जैसे सूर्य उत्तर को छोड़ के दक्षिण में आता है, दक्षिण में जी के फिर उत्तर की तरफ चलता है ऐसे ही महापुरुष उत्तर की यात्रा करते हुए भी हम लोगों के बीच दक्षिण की तरफ आते हैं । हम उनके साथ चल पड़ें और उत्तर की यात्रा कर लें तो हमें पता चलेगा कि उत्तरायण कितना मूल्यवान पर्व है ।
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