जब गुरु के चरणों में तुम्हारा प्रेम हो जायेगा, तब दूसरों से प्रेम नहीं होगा। भक्ति में ईमानदारी चाहिए, बेईमानी नहीं । बेईमानी सम्पूर्ण दोषों व दुःखों की जड़ है। सुगमता से दोषों और दुःखों पर विजय प्राप्त करने का उपाय है ईमानदारी के साथ, सच्चाई के साथ, श्रद्धा के साथ और हित के साथ गुरु की सेवा करना ।
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