निःस्वार्थता, लोभरहित एवं निष्कामता मनुष्य को देवत्व प्रदान करती हैं । जबकि स्वार्थ और लोभ मनुष्य को मनुष्यता से हटाकर दानवता जैसी दुःखदायी योनियों में भटकाते हैंल । जहाँ स्वार्थ है वहाँ आदमी असुर हो जाता है । जबकि निःस्वार्थता और निष्कामता से उसमें सुरत्व जाग उठता है । – पूज्य बापूजी।
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