– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(श्रीराम नवमी : 10 अप्रैल 2022)
दशरथ व कौसल्या के घर राम प्रकट हुए ।
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
कोसल देश की वह कौसल्या… अर्थात् योगः कर्मसु कौशलम् । कुशलतापूर्वक कर्मवाली मति कौसल्या हो जायेगी और कौसल्या के यहाँ प्रकटेंगे दीनदयाला । इस कुशल मति का हित करनेवाले सच्चिदानंद राम प्रकट होंगे । दस इन्द्रियों में रमण करनेवाले जीव दशरथ हैं । दशरथ को रामराज्य की इच्छा हुई कि ‘अब बाल पक गये हैं… कितना भी देखा, सुना, भोगा लेकिन आखिर क्या ?… अब रामराज्य हो ।’ दशरथ चाहते हैं रामराज्य । दस इन्द्रियों में रत रहनेवाला जीव विश्रांति चाहता है वृद्धावस्था में, सुख-शांति चाहता है, झंझटों से उपरामता चाहता है ।
रामराज्य की तैयारियाँ हो रही हैं, राज्याभिषेक की शहनाइयाँ बज रही हैं, मंगल गीत गाये जा रहे हैं लेकिन दस इन्द्रियों में रत जीव की रामराज्य की तैयारियाँ होते-होते यह दशरथ कैकयी के कहे-सुने में आ जाता है अर्थात् कामनाओं के जाल में फँस जाता है । रामराज्य की जगह राम-वनवास हो जाता है । तड़प-तड़पकर यह दशरथ संसार से विदाई लेता है । यह दशरथ का जीवन, कौसल्या का जीवन आपके जीवन से जुड़ा है, राम का अवतरण आपके अंतर्यामी राम से जुड़ा है । राम करें कि आपको राम का पता चल जाय ।
रमन्ते योगिनः यस्मिन् स रामः ।
जिनमें योगी लोगों का मन रमण करता है वे हैं रोम-रोम में बसनेवाले अंतरात्मा राम । वे कहाँ प्रकट होते हैं ? कौसल्या की गोद में, लेकिन कैसे प्रकट होते हैं कि दशरथ यज्ञ करते हैं अर्थात् साधन, पुण्यकर्म करते हैं और उस साधन-पुण्य, साधन-यज्ञ से उत्पन्न वह हवि बुद्धिरूपी कौसल्या लेती है और उसमें सच्चिदानंद राम का प्राकट्य होता है । आपकी मतिरूपी कौसल्या के स्वभाव में राम प्रकट हों । वे राम कैसे दीनदयालु हैं ? ब्रह्मांडों में व्याप्त सच्चिदानंद नररूप में लीला करते हैं ।
नराणामयनं यस्मात्तेन नारायणः स्मृतः ।
(वायु पुराण : 5.38)
नर-नारियों के समूह में जो सच्चिदानंद परमात्मा व्याप रहा है उसे ‘नारायण’ कहते हैं । रोम-रोम में रम रहा है इसलिए उसे ‘राम’ भी कहते हैं ।
अर्जुन ने श्रीकृष्ण से प्रश्न किया था कि ‘प्रभु ! आपमें प्रीति कैसे हो और आपको हम कैसे जानें ?’ तब भगवान ने करुणा करके कहा :
एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वतः ।
सोऽविकम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशयः ।।
(गीता : 10.7)
जो मनुष्य मेरी इस विभूति (भगवान का ऐश्वर्य) को और योग (अनंत, अलौकिक सामर्थ्य) को तत्त्व से जानता है अर्थात् दृढ़ता से स्वीकार कर लेता है वह अविचल भक्तियोग से युक्त हो जाता है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है ।
एक तो भगवान की विभूति और दूसरा भगवान का योग – इन दोनों को इस व्यापक, साकार संसार में निहारने का नजरिया आ जाय । सही नजरिया खो जाता है तो जीव आसुरी वृत्ति का आश्रय लेता है । कहता है : ‘कुछ भी करो, सुखी हो जाओ । कुछ भी बोलो, सुखी हो जाओ । कुछ भी खाओ, सुखी हो जाओ ।…’ अंत में बेचारा दुःखी हो जाता है । वही बोलो जो बोलना चाहिए, वही सोचो जो सोचना चाहिए, वही करो जो करना चाहिए, वही पाओ जिसे पाने के बाद कुछ पाना बाकी नहीं रहता ।
जो बिछड़े हैं प्यारे से, दर बदर भटकते फिरते हैं ।
उस प्यारे रोम-रोम में रमनेवाले सच्चिदानंद से जो बिछुड़े हैं वे सोचते हैं, ‘यहाँ जाऊँ तो सुखी हो जाऊँ, अमेरिका जाऊँ तो सुखी हो जाऊँ, यूरोप जाऊँ तो सुखी हो जाऊँ…’ लाला ! तू एक ऐसी जगह जा कि जहाँ जाने के बाद तेरी दृष्टि ही लोगों को सुखी कर दे । ऐसा है तेरा सच्चिदानंद रामस्वरूप ! तू उसमें जा । उसमें जाने की बुद्धि ले आ । कैसे मिलेगी ? योगः कर्मसु कौशलम् । कर्म करने में कुशलता रखने से । कैसा कर्म ? स्वाद के लिए कर्म नहीं अपितु शाश्वत सुख के लिए कर्म हो तो आपका योग कुशलतापूर्वक हो जायेगा और फिर आपकी बुद्धिरूपी कौसल्या के यहाँ राम प्रकटेंगे ।
बच्चा है न, उसके सामने लॉलीपॉप, चॉकलेट, बिस्कुट, हीरे-मोती, जवाहरात रख दो तो वह क्या करेगा ? हीरे-मोती, जवाहरात छू के छोड़ देगा और लॉलीपॉप, चॉकलेट जल्दी सुख का आभास देनेवाले हैं, जल्दी ललक पैदा करनेवाले हैं उनमें फँसेगा क्योंकि बुद्धि अकुशल है । वही बच्चा जब बड़ा हो जाता है तब उसके आगे, तुम्हारे आगे अगर मैं हीरे-जवाहरात रख दूँ और लॉलीपॉप, चॉकलेट रख दूँ तो तुम क्या उठाओगे मुझे पता है । आपकी जैसे इस जगत में बुद्धि कुशल हुई, वैसे इस जगत की गहराई में आत्मिक जगत है, उसका ज्ञान पाने में बुद्धि का कुशल हो जाना मनुष्य-जीवन का लक्ष्य है ।
तीन जगत हैं । एक यह जो आँखों से दिखता है, इसे स्थूल जगत कहते हैं । दूसरा वह है जो इन आँखों और इन्द्रियों से नहीं दिखता फिर भी उसकी सत्ता के बिना यह शरीर और इन्द्रियाँ चल नहीं सकतीं । वह दिव्य जगत है । तीसरा होता है तात्त्विक जगत । यह सर्वोपरि सत्ता है जिससे स्थूल और दिव्य – दोनों जगत संचालित होते हैं । आपके कर्मों में कुशलता आयेगी तो आप लौकिक कर्म करते हुए भी दिव्य जगत और फिर तात्त्विक जगत में प्रवेश पा लोगे ।
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