– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(मातृ-पितृ पूजन दिवस: 14 फरवरी)
14 फरवरी को वेलेंटाइन डे मनाकर युवती युवक को, युवक युवती को फूल दे और बोले ‘आई लव यू’, फिर एक-दूसरे को विकारी दृष्टि से स्पर्श करे तो इससे युवाधन की तबाही होगी, रज-वीर्य कमजोर होगा, यादशक्ति, सहनशक्ति मारी जायेगी, परीक्षा में अच्छे अंक नहीं आयेंगे । 14 फरवरी को करोड़ों रुपयों की दारू बिक जाती है । दारू के तो पैसे गये लेकिन युवक-युवतियों की बुद्धि कितनी बिगड़ी ! यह कुरीति अब हमारे विद्यालय-महाविद्यालयों में फैल रही है इसकी पीड़ा मेरे हृदय में थी इसलिए मैंने मातृ-पितृ पूजन दिवस का त्यौहार मनवाना शुरू किया ।
बेटे-बेटियों को सत्प्रेरणा
जैसे गणेशजी ने माता पार्वती और शिवजी का पूजन किया ऐसे ही तुम लोग इस दिन माता-पिता का पूजन करना । कलियुग में तप, उपवास, व्रत, धारणा, ध्यान, समाधि कठिन है लेकिन चलते-फिरते जागते देव – सर्वतीर्थमयी माता, सर्वदेवमयः पिता का आदर-सत्कार करना तो सरल है । बुढ़ापे में उनसे उद्दंड व्यवहार न करना, उनको नर्सिंग होम में, वृद्धाश्रम में, अनाथाश्रम में मत छोड़ना, उनसे मुँह मत मोड़ना ।
माता-पिता के प्रति बच्चों के मन में मान बढ़े ऐसी ‘माँ-बाप को भूलना नहीं’ जैसी पुस्तकें एक-दूसरे को पढ़ाओ । बच्चे जरा-जरा बात में माँ-बाप की बात को ठुकरा के मनमुख होकर फिर आगे चल के अशांत होते हैं । माता-पिता बच्चों को 13 फरवरी को याद दिलायें और तैयारी रखें । 14 फरवरी को बच्चे सुबह संकल्प करें कि ‘मैं माता-पिता के अंदर छुपे हुए परमात्मदेव का प्रत्यक्ष पूजन करूँगा । मातृ-पितृ पूजन दिवस मनाऊँगा ।’
14 फरवरी को फूल लेकर प्रेमी या प्रेमिका के पास नहीं, पूजा की सामग्री ले के माँ-बाप के चरणों में जाना । आपका मंगल होगा बेटे-बेटियो ! फिर आपके बच्चे भी ऐसे ही आपका आदर करेंगे । जो माता-पिता और गुरुओं का आदर करते हैं वे स्वयं भी आदरणीय हो जाते हैं ।
वासना-दिवस नहीं, सच्चा प्रेम-दिवस
बेटा-बेटी माँ-बाप में परमात्मा देखें, माँ-बाप बेटे-बेटी में परमात्मा देखें – यह है सच्चा प्रेम-दिवस ! और युवक-युवतियाँ एक-दूसरे को कामुक दृष्टि से देखते हैं वह प्रेम के नाम पर है वासना दिवस, सत्यानाश दिवस ! तो यह काम-विकारी दिवस मनाने की विश्वमानव को कोई जरूरत नहीं है ।
जानते हो विकारी प्रेम (काम) और शुद्ध प्रेम (अंतर्राम) का अंजाम ?
काम : * यह व्यक्ति को बहिर्मुख करता है । * इससे अशांति और झगड़े पैदा होते हैं ।
* विनाश की तरफ ले जाता है । * इसमें एक-दूसरे का शोषण होता है । * इससे व्यक्ति थक जाता है, उसमें जड़ता, जीर्णता-शीर्णता आती है ।
शुद्ध प्रेम : * यह अंतर्मुख करता है ।
* इससे शांति और समाधान प्रकट होता है ।
* अविनाशी की तरफ ले जाता है । * इसमें एक-दूसरे का पोषण होता है । * इससे आनंद व उल्लास रहता है, चेतना व स्फूर्ति आ जाती है ।
मातृ-पितृ पूजन विधि व महिमा हेतु पढ़ें संत श्री आशारामजी आश्रम के सेवाकेन्द्रों पर उपलब्ध पुस्तक ‘माँ-बाप को भूलना नहीं’ ।
Ref: ISSUE301-JANUARY-2018
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