(अधिकमास १८ जुलाई १६ अगस्त 2023)
अधिक मास में सूर्य की संक्रांति (सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश न होने के कारण इस ‘मलमास (मलिन मास) कहा गया। स्वामीरहित होने से यह मलमास देव पितर आदि की पूजा तथा मंगल कर्मों के लिए त्याज्य माना गया। इससे लोग इसकी घोर निंदा करने लगे। इस प्रकार की लोक- भर्त्सना से चिंतातुर हो, अपार दुःख- समुद्र में निमग्न होकर यह भगवान विष्णु की शरण में गया।
मलमास को शरणागत देख भगवान विष्णु उसकी दयनीय दशा से चिंतित हो गये व उसे गोलोक में ले गये, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण विराजमान थे। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से कहा “अधिक मास मलिन होने से सबने इसकी घोर निंदा की है। हृषीकेश ! आपके अतिरिक्त दूसरा कोई भी इसके महान क्लेश का निवारण नहीं कर सकता। अतः इसे दुःख संताप की पीड़ा से कृपया मुक्त कीजिये।”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा “विष्णो ! मैं इसे • सर्वोपरि अपने तुल्य करता हूँ।
सद्गुण, कीर्ति, प्रभाव, पडैश्वर्य, पराक्रम, भक्तों को वरदान देने का सामर्थ्य आदि जितने गुण मुझमें हैं, उन सबको आज से मैंने मलमास को सौंप दिया।
अहमेते यथा लोके प्रथितः पुरुषोत्तमः । तथायमपि लोकेषु प्रथितः पुरुषोत्तमः ॥
उन गुणों के कारण जिस प्रकार में वेदों, लोकों और शास्त्रों में ‘पुरुषोत्तम’ नाम से विख्यात हूँ, उसी प्रकार आज से यह मलमास भी भूतल पर ‘पुरुषोत्तम’ नाम से प्रसिद्ध होगा और मैं स्वयं इसका स्वामी हो गया हूँ।
जिस परम धाम गोलोक में पहुँचने के लिए मुनि महर्षि कठोर तपस्या में निरंतर रत रहते हैं, वही दुर्लभ पद पुरुषोत्तम मास में स्नान, पूजादि अनुष्ठान करनेवाले भक्तजनों को सुगमता से प्राप्त हो सकेगा।
आज से संसार के सभी प्राणी मेरी आज्ञानुसार मेरे तुल्य पुरुषोत्तम मास की पूजा सदैव करते रहेंगे। यह सर्वश्रेष्ठ मास के रूप में विख्यात होगा।”
इस प्रकार अधिक मास भगवान श्रीकृष्ण से वर प्राप्त करके पुरुषोत्तम मास के नाम से विख्यात हुआ।
चतुर्मास में इस मास को अधिक महत्त्वपूर्ण माना गया है। इसलिए इस मास में प्रातः स्नान, दान, तप, नियम, धर्म, पुण्यकर्म, व्रत-उपासना तथा निःस्वार्थ नाम जप गुरुमंत्र जप का अधिक महत्त्व है।
इस महीने में दीपकों का दान करने से मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं। दुःख-शोकों का नाश होता है। वंशदीप बढ़ता है, ऊँचा सान्निध्य मिलता है, आयु बढ़ती है।
- इस मास में आँवले और तिल का उबटन शरीर पर मलकर स्नान करना और आँवले के पेड़ के नीचे भोजन करना यह भगवान श्री पुरुषोत्तम को अतिशय प्रिय है, साथ ही स्वास्थ्यप्रद और प्रसन्नताप्रद भी है। यह व्रत करनेवाले लोग बहुत पुण्यवान हो जाते हैं।
अधिक मास में शादी, दीक्षाग्रहण जैसे मंगल कार्य नहीं किये जाते। इस मास में सभी मंगल कर्म वर्ज्य होने पर भी नियमित पैतृक श्राद्ध करने का विधान है। प्रत्येक वर्ष में माता-पिता की मरण तिथि पर जिस प्रकार श्राद्ध कर्म करते आ रहे हों, वैसे ही मलमास में भी वह तिथि उपस्थित होने पर श्राद्ध करना चाहिए।
अन्नं ब्रह्म रसो विष्णुर्भोक्ता देवो महेश्वरः ।
‘अन्न ब्रह्म है, उसका रस विष्णु है व उसके भोक्ता भगवान शिव हैं।’ इस प्रकार ध्यान करके भोजन करने से भोजन के दोष समाप्त हो जाते हैं।
REF:ISSUE139-JULY-2004
Give a Reply