अवतार होना, किसी महापुरुष का धरा पर आना अथवा भगवान का अवतरित होना यह विधि के विधान में एक व्यवस्था है । बहुत लोगों की माँग तो है लेकिन उसकी पूर्ति की दिशा नहीं है, एकतानता नहीं है । ऐसी माँगों के संकल्प एकत्र होकर जिन पुरुष में दिखाई देते हैं वे समाज में अवतार की नाईं पूजे जाते हैं । महात्मा बुद्ध हों, चाहे और कोई हों, चाहे समाज में आत्मविश्रांति देनेवाले महापुरुष हों ।
समाज को शोषण से बचाकर अपने पैरों पर खड़ा करने और अविद्या, अहंकार को मिटाने के लिए मध्यरात्रि को जिस अवतार को अवतरित होना पड़ा उसका नाम है ‘कृष्णावतार’ ।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मध्याह्न के ठीक 12 बजे संसार के तापों से तप्त जीवों को मर्यादा की राह दिखाकर सुख-शांति का साम्राज्य देने हेतु जो अवतार हुआ वह है ‘रामावतार’ ।
जो कंस, रावण जैसे के संहार का बड़ा निमित्त लेकर आये और दुष्टों का दमन करते हुए संसार को सही रास्ता दिखाये उसे बोलते हैं नैमित्तिक अवतार ।
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।… (गीता : 4.7)
जब-जब धर्म की हानि होती है और अधर्म जोर पकड़ता है तब-तब भगवान की शक्ति का, चेतना का अवतरण होता है ।
संतों का अवतरण नित्य अवतार श्रेणी में माना गया है । जैसे गुरु नानकजी, गोविंदसिंहजी, तेग बहादुरजी आये, संत कबीरजी, श्री रामकृष्ण, रामानुजाचार्यजी, वल्लभाचार्यजी, गोविंदपादाचार्यजी, गौरांग, साँईं लीलाशाहजी आये । कभी कहीं, कभी कहीं ऐसे महापुरुषों के रूप में अवतरित होकर परमात्म-सत्ता समाज का हित करती है, उसको बोलते हैं ‘नित्य अवतार’ ।
आत्मसाक्षात्कार के पहले वर्षगाँठ ऐसे मनायें
संत-महापुरुष कहते हैं कि जब तक आत्मसाक्षात्कार नहीं होता है तब तक साधारण लोग जन्मदिन मनायें तो उन्हें यह करना चाहिए :
पहली बात, रो लेना चाहिए । जब-जब एक वर्ष पूरा हो तो याद करें कि जिसके लिए (परमात्मप्राप्ति के लिए) मनुष्य-जन्म था वह काम हुआ कि नहीं हुआ ? वह अभी नहीं हुआ तो उस दिन रो लेवें कि ‘अभी तक परमात्मा का अनुभव नहीं हुआ, इतने वर्ष व्यर्थ गये ।’
स्वामी रामतीर्थ रोते थे कि ‘अरे ! 21 साल बीत गये । 21वाँ जन्मदिन है यह झूठी बात है, 21 साल मैं मरा हूँ । हर रोज मरते-मरते आज 21 साल हो गये । जब अपने जीवात्मा को परमात्मा के रूप में प्रकट देखेंगे तब हमारा सच्चा जन्म होगा ।’
दूसरी बात, वर्षभर में काम, क्रोध, लोभ, भय, चिंता से जो हानि हुई है, उसका सिंहावलोकन करके ऐसा मौका जीवन में फिर नहीं लायेंगे और इस आनेवाले वर्ष में इतना दान-पुण्य करेंगे, इतना जप करेंगे… ऐसा कुछ-न-कुछ नियम बना लें ।
तीसरी बात, प्रतिदिन 5-10 मिनट के लिए कमरा बंद करके ईमानदारी से कीर्तन करें ताकि छुपी हुई शक्तियों का विकास हो । इससे भक्ति की भावनाओं का विकास होता है, छुपा हुआ ज्ञान प्रकट होकर धधकता है, छुपा हुआ प्रेम पल्लवित होता है और जीवन सुशोभित हलके फूल जैसा विकसित होता है ।
24 घंटे में 1440 मिनट होते हैं । 1400 मिनट तो तुम्हारे हैं परंतु 40 मिनट हमारे हैं । 10-10 मिनट की चार संध्याएँ करो – सुबह, दोपहर, शाम और रात । रातवाली संधि को शाम में ले आओ । ईमानदारी से किया गया ध्यान, जप तुम्हारी जीवनीशक्ति को, जीवन को विकसित करेगा । (40 मिनट प्रारम्भिक समय है । कोई इससे अधिक समय ध्यान-भजन करते हैं तो अच्छा ही है ।)
जब-जब तुम्हारे इस शरीर का जन्मदिन हो तब-तब ऐसा कुछ-न-कुछ नियंत्रण बना लेना, नियम ले लेना कि तुम्हारे जीवन का विकास हो । अपने द्वारा की हुई भलाइयाँ भूल जायें और किसीके द्वारा की हुई बुराई भी भूल जायें, आप जीवन में सुखी रहेंगे । बीते हुए वर्ष और आनेवाले वर्ष की संधि है वर्षगाँठ । इस संधि में संधिदाता को पहचानने का संकल्प करना ही वर्षगाँठ मनाने का उद्देश्य है ।
यह भेंट तो देनी ही चाहिए
बोले : ‘बाबाजी ! आपका जन्मदिन आनेवाला है तो हम क्या करें ?’
जो तुम करते हो करो पर याद रखना, उस दिन बाबाजी को कुछ-न-कुछ भेंट देनी चाहिए । और बाबाजी तुम्हारे रुपये-पैसे, वस्त्र, मिठाई भेंट नहीं चाहते । जिस वस्तु-परिस्थिति में तुम्हारी आसक्ति हो, अपनी आसक्ति कागज में लिखना और उस आसक्ति को छोड़ने के संकल्प के साथ वह कागज यहाँ (व्यासपीठ पर) अर्पण करके जाना, वह तुम्हारी भेंट हो जायेगी ।
बीड़ी-दारू तो मेरे साधक नहीं पीते यह मुझे 100 प्रतिशत विश्वास है परंतु गपशप लगाते हैं । तो संकल्प करें कि ‘इस वर्ष गपशप के ऊपर प्रतिबंध लगाता हूँ ।’ अथवा तो जो-जो कमजोरियाँ हैं, आसक्तियाँ हैं उन्हें निकालने का संकल्प करें । दूसरा संकल्प यह करें कि ‘इस पूरे वर्ष में गुरुमंत्र का अनुष्ठान करूँगा ।’ संकल्प कर लेना फिर उसे लिखकर उसकी 2 प्रतियाँ बनाना । एक प्रति यहाँ के भंडार में (व्यासपीठ या बड़ बादशाह पर) डाल के जाना दक्षिणा के रूप में तथा एक प्रति अपने पास रखना और हर सप्ताह उसको पढ़कर अपने जीवन को जीवनदाता के करीब आगे बढ़ाना – यह दक्षिणा हो जायेगी । जन्मदिवस पर दक्षिणा तो देना है पर यही दक्षिणा देना है ।
REF: ISSUE340-APRIL-2021
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