श्राद्ध पक्ष के दिन ऋषियों के प्रति, अपने माँ-बाप के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने, अनाहत चक्र को विकसित करने और अंदर की सुरक्षा के दिन हैं ।
जैसा दोगे, वैसा मिलेगा
हमारे भौतिक कल्याण के लिए माँ-बाप ने खून-पसीना एक किया । आध्यात्मिक उत्थान के लिए ऋषियों ने चमड़ी घिस डाली, खून-पसीना एक कर डाला, जीवन की सुख-सुविधाएँ छोड़कर एकांत अरण्य में रहे । ऐसे महापुरुषों ने हमारे उत्थान के अलग-अलग तरीके बनाये । उन्होंने तुम्हारे लिए बहुत सारा किया है तो तुम भी उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करो । कृतज्ञता को स्थूलरूप में दिखाने के जो दिन हैं वे श्राद्ध के दिन कहे जाते हैं । तुम जो देते हो वह पाते हो । तुम श्रद्धा करते हो, पितरों को देते हो, ऋषियों का तर्पण करते हो तो तुमको भी उनका आशीर्वाद लौट मिलता है । श्राद्ध करने से तुम्हारे धन का सामाजीकरण होता है और तुम्हारा समय कृतज्ञता में खर्च होता है ।
इसका अवश्य ध्यान रखें
श्राद्ध के दिन श्राद्धकर्ता को तेल लगाना मना है । उस दिन किसी ऐसे बड़े व्यक्ति को नहीं बुलाना चाहिए जिस पर ध्यान देना पड़े । उस पर ध्यान दोगे तो जिनका श्राद्ध करते हो उनका अपमान होता है । आँसू बहाते-बहाते अगर श्राद्ध किया जाय तो वह प्रेतों को चला जाता है । अतः आँसू बहाकर श्राद्ध नहीं करना चाहिए ।
भोजन द्वारा ब्राह्मण को तृप्त करें
तुम खीर बनाओ, भोजन बनाओ पर यह जरूरी नहीं है कि तुम 10 ब्राह्मणों को ही खिलाओ, 2 या 1 ब्राह्मण को खिलाओ, जो व्यसनमुक्त, परोपकारी, सदाचारी, सज्जन हो । ब्राह्मण जितना सुयोग्य, रसोई बनानेवाला जितना सुयोग्य (शुद्धि एवं पवित्रता आदि का ध्यान रखनेवाला), वातावरण जितना एकांत और पवित्र उतना उस श्राद्ध का मूल्य होता है ।
श्राद्ध का भोजन करनेवाला ब्राह्मण भोजन करते समय मौन रहे । बोलेगा तो प्राणशक्ति, मनःशक्ति क्षीण होती है । भोजन करानेवाला भोजन की प्रशंसा करे : ‘महाराज ! यह हलवा देखो, बहुत बढ़िया बना है… यह खीर ऐसी है…’ इस प्रकार ब्राह्मण को खाने के लिए लालायित करके संतुष्ट करे (किंतु ब्राह्मण के बार-बार मना करने के बाद भी बहुत हठ करके इतना भोजन न परोस दें कि जूठन छूटे या वे नाराज हों । – संकलक) ।
तुम धन से, जमीन-जागीर से अथवा बाहर की सूचनाओं के तथाकथित ज्ञान से किसीको संतुष्ट नहीं कर सकते । किसीको 50-100 रुपये दो तो कहेगा : ‘ठीक है, बहुत है…’ पर अंदर माँग है । तुमने 2-4 बीघा जमीन दान दी तो बोलेगा : ‘ठीक है ।’ पर दूसरी भी लेने की उसके पास योग्यता है । वह भीतर से पूरा तृप्त नहीं है । एक भोजन ही ऐसा है कि तुम खिलाते जाओ तो व्यक्ति भीतर और बाहर से तृप्त हो जाता है । दो चमची ज्यादा जाती होगी तो बोलेगा : ‘बस, बस, बस !…’
फिर मनु महाराज कहते हैं कि ‘‘बचे हुए भोजन के लिए ब्राह्मण से पूछो : ‘महाराज ! इसका क्या उपयोग करें ?’’
ब्राह्मण देखेगा कि इनके घर के लोग भूखे हैं तो बोलेगा कि ‘आप प्रसाद पा लो ।’ लोभी होगा तो बोलेगा, ‘मेरे लिए दे दो ।’ उस दिन एक थाली ज्यादा गयी तो क्या है ! तुम आदर और श्रद्धा का व्यवहार करोगे तो ब्राह्मण के द्वारा भगवान तुम पर संतुष्ट हो जायेंगे ।
कुछ भी न हो तो ऐसे करें श्राद्ध
यदि तुम्हारे पास दरिद्रता नाच रही हो, खाने-पीने का द्रव्य नहीं हो तो श्राद्ध की पद्धति ऐसा नहीं कहती कि श्राद्ध में इतना-इतना करो ही । तुम नदी के किनारे अथवा नल के नीचे स्नान आदि करके जल से अंजलि भर के उसमें थोड़े-से तिल डालो तो डालो, नहीं तो ऐसे ही उन पितरों का सुमिरन करके तर्पण कर दो । तुममें प्रेम और श्रद्धा होगी तो उससे भी वे तृप्त हो जायेंगे और तुम्हें आशीर्वाद देंगे । – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(श्राद्ध से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें आश्रम से प्रकाशित पुस्तक ‘श्राद्ध-महिमा’ ।)
Ref: ISSUE332-AUGUST2020
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