– पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
महाशिवरात्रि : 1 मार्च
सत्यं ज्ञानं अनन्तस्य चिदानन्दं उदारतः ।
निर्गुणोरूपाधिश्च निरंजनोऽव्यय तथा ।।
शास्त्र भगवान शिव के तत्त्व का बयान करते हुए कहते हैं कि शिव का अर्थ है जो मंगलमय हो, जो सत्य हो, जो ज्ञानस्वरूप हो, जिसका कभी अंत न होता हो । जिसका आदि और अंत है, जो बदलनेवाला है वह शिव नहीं, अशिव है । जो अनंत है, अविनाशी है वह शिव है ।
संत भोले बाबा कहते हैं :
शव देह में आसक्त होना, है तुझे ना सोहता ।
हमारी वृत्ति रात को निद्राग्रस्त हो जाती है तो हमारे शरीर में और शव में कोई खास फर्क नहीं रहता । साँप आकर चला जाय हमारे शरीर पर से तो कोई पता नहीं चलेगा, कोई संत पुरुष आ जायें तो स्वागत करने का कोई पता नहीं… तो हमारी यह देह शव-देह है । शिव-तत्त्व की तरफ यदि थोड़ा-सा भी आते हो तो देह की आसक्तियाँ, बंधन कम होने लगते हैं । हजारों-हजारों बार हमने अपनी देहों को सँभाला लेकिन वे अंत में तो जीर्ण-शीर्ण होकर मर गयीं । शरीर मर जाय, देह जीर्ण-शीर्ण हो जाय उसके पहले यदि हम अपने अहंकार को, अपनी मान्यताओं-कल्पनाओं को परमात्मशांति में, शिव-तत्त्व में डुबा दें… तो श्रीमद् राजचन्द्र कहते हैं :
देह छतां जेनी दशा वर्ते देहातीत ।
ते ज्ञानीना चरणमां हो वंदन अगणीत ।।
देह होते हुए भी उससे पर जाने का सौभाग्य मिल जाय यह मनुष्य-जन्म के फल की पराकाष्ठा है ।
अपने देश में आयें
महाशिवरात्रि हमें संदेश देती है कि मनुष्य-जन्म अपने देश (अंतरात्मा) में आने के लिए है । जो दिख रहा है यह पर-देश है । बाहर कितना भी घूमो, रात को थक के अपने देश आते हो (सुषुप्ति में) तो सुबह ताजे हो जाते हो… लेकिन अनजाने में आते हो ।
पंचामृत से स्नान कराने का आशय
मन-ही-मन तुम भगवान शंकर को जलराशि से, दूध से, दही से, घृत से फिर मधु से स्नान कराओ और प्रार्थना करो : ‘हे भोलेनाथ ! आपको जरा-से दही, घी, शहद की क्या जरूरत है लेकिन आप हमें संकेत देते हैं कि प्रारम्भ में तो पानी जैसा बहता हुआ हमारा जीवन फिर धर्म-कर्म से दूध जैसा कुछ सुहावना हो जाता है । ध्यान के द्वारा दूध जैसी धार्मिकता जब जम जाती है तो जैसे दही से मक्खन और फिर घी हो जाता है वैसे ही साधना का बल और ओज हमारे जीवन में आता है ।’ जैसे घी पुष्टिदायक, बलदायक है ऐसे ही साधक का संकल्प बलदायक होता है । साधक के चित्त की वृत्ति दुर्बल नहीं होती, पानी जैसी चंचल नहीं होती बल्कि एकाग्र होती है, बलवान होती है, सत्यसंकल्प हुआ करती है और सत्यसंकल्प होने पर भी वह कटु नहीं होती, मधुर होती है इसलिए मधुस्नानं समर्पयामि । साधक का जीवन शहद जैसा मधुर होता जाता है । इस प्रकार पंचामृत का स्नान कराओ । तुम्हारा मन देह की वृत्ति से हटकर अंतर्मुख वृत्ति में आ जायेगा ।
शिव शांत में लग जायेगा, आनंद अद्भुत आयेगा ।।
यह लाख-लाख चौरासियों का फल देनेवाली महाशिवरात्रि हो सकती है । हजार-हजार कर्मों का फल जहाँ न पहुँचाये वहाँ महाशिवरात्रि की घड़ियाँ पहुँचा सकती हैं ।
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