पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
(चतुर्मास व्रत : 10 जुलाई से 4 नवम्बर)
चतुर्मास में भगवान नारायण एक रूप में तो राजा बलि के पास रहते हैं और दूसरे रूप में शेष शय्या पर शयन करते हैं, अपने योग स्वभाव में, शांत स्वभाव में, ब्रह्मानंद स्वभाव में रहते हैं। अतः इन दिनों में किया हुआ जप, संयम, दान, उपवास, मौन विशेष हितकारी, पुण्यदायी, साफल्यदायी है। भगवान शेषशय्या पर सोते हैं, अतः हमें धरती या पलंग पर सादा बिस्तर अथवा कम्बल बिछाकर शयन करना चाहिए।
चतुर्मास में दीपदान करने वाले की बुद्धि, विचार और व्यवहार में ठीक ज्ञान-प्रकाश की वृद्धि होती है और कई दीपदान करने का फल भी होता है। इन दिनों में प्रात: नक्षत्र (तारे) दिखें उसी समय उठ जाय, नक्षत्र-दर्शन करे। चौबीस घंटे में एक बार भोजन करे ऐसे व्रत परायण व्यक्ति को अग्निष्टोम यज्ञ का फल मिल जाता है। (पद्म पुराण उत्तर खंड)
चतुर्मास में केवल दूध पर रहने वाले अथवा केवल फल पर रहनेवाले के पापों का नाश हो जाता है तथा साधन-भजन में बड़ा बल मिलता है ऐसा स्कंद पुराण में लिखा है। नमक का त्याग कर सकें तो अच्छा है। जो दही का त्याग करता है उसको गोलोक की प्राप्ति होती है।
चतुर्मास में दोनों पक्षों की एकादशी रखनी चाहिए। बाकी दिनों में गृहस्थी को शुक्ल पक्ष की ही एकादशी रखनी चाहिए। चतुर्मास में शादी-विवाह, सकाम कर्म वर्जित हैं। तिल व आँवला मिश्रित अथवा बिल्वपत्र के जल से स्नान करना पापनाशक, प्रसन्नतादायक होगा। अगर ‘ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय…’ ५ बार जप करके फिर पानी का लोटा सिर पर डाला तो पित्त की बीमारी, कंठ का सूखना यह कम हो जायेगा, – चिड़चिड़ा स्वभाव भी कम हो जायेगा।
चतुर्मास में पाचनतंत्र दुर्बल होता है तो खानपान सादा, सुपाच्य होना चाहिए। इन दिनों पलाश की पत्तल पर भोजन करनेवाले को एक-एक दिन एक-एक यज्ञ करने का फल होता है, वह धनवान, रूपवान और मानयोग्य व्यक्ति बन जायेगा। पलाश की पत्तल पर भोजन बड़े-बड़े पातकों का नाशक है, ब्रह्मभाव को प्राप्त करानेवाला होता है। नहीं तो वटवृक्ष के पत्तों या पत्तल पर भोजन करना पुण्यदायी कहा गया है।
भगवान शंकर को बिल्वपत्र चढ़ाओ तो पूरे मंदिर में बिल्वपत्र का हवामान रहेगा और वही हवा श्वास के द्वारा व्यक्ति लेगा, इससे वायु प्रकोप दूर होगा तथा वनस्पति व मंत्र का आपस में जो मेल होगा उसका भी लाभ मिलेगा। इसलिए सावन महीने में बिल्वपत्र की महिमा है।
इन ४ महीनों में अगर पति-पत्नी हैं, तब भी ब्रह्मचर्य का पालन करना आयु, आरोग्य और पुष्टि में वृद्धि करता है। भोग-विलास, शारीरिक स्पर्श ज्यादा हानि करेगा। इस समय सूर्य की किरणें धरती पर कम पड़ती हैं तो जीवनीशक्ति कमजोर रहती है, जिससे वीर्य, ओज कम बनता है। जो विदेशी लोग चतुर्मास के महत्त्व को नहीं जानते वे ‘यह पाऊँ, यह खाऊँ…’ में उलझते हैं, विकलांग, चिड़चिड़े, पति-बदलू, पत्नी-बदलू, फैशन-बदलू हो जाते हैं, फिर भी दुःखी व अशांत रहते हैं। जो इसका महत्त्व जानते हैं और नियम पालते हैं वे कुछ बदलू नहीं होते फिर भी अबदल आत्मा में उनका रसमय जीवन होता है
कितनी असुविधा होती है भारतवासियों को, फिर भी शांति, आनंद और मस्ती-मजे में रह रहे हैं। और कई माई-भाई ऐसे हैं कि जो वे कह देते हैं वह हो जाता है अथवा जो होनी होती है वह उनको पता चल जाती है।
विदेशियों के पास ऐसा सामर्थ्य नहीं है।
चतुर्मास में निंदा न करे, ब्रह्मचर्य का पालन करे, किसी भी अविवाहित या दूसरे की विवाहित स्त्री पर बुरी नजर न करे, संत-दर्शन करे, संत के वचनवाले सत्शास्त्र पढ़े, सत्संग सुने, संतों की सेवा करे और सुबह या जब समय मिले भ्रूमध्य में ॐकार का ध्यान करने से बुद्धि का विकास होता है।
मिथ्या आचरण का त्याग कर दे और जप अनुष्ठान करे तो उसे ब्रह्मविद्या का अधिकार मिल जाता है।
जिसने चतुर्मास में संयम करके अपना साधन-भजन का धन नहीं इकट्ठा किया मानो उसने अपने हाथ से अमृत का घड़ा गिरा दिया। और मासों की अपेक्षा चतुर्मास में बहुत शीघ्रता से आध्यात्मिक उन्नति होती है। जैसे चतुर्मास में दूसरे मौसम की अपेक्षा पेड़-पौधों की कलमें विशेष रूप से लग जाती हैं, ऐसे ही चतुर्मास में पुण्य, दान, यज्ञ, व्रत, सत्य आदि भी आपके गहरे मन में विशेष लग जाते हैं और महाफल देने तक आपकी मदद में रहते हैं।
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