
प्राणायाम के लाभ
पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘बहुत-से ऐसे रोग होते हैं जिनमें कसरत करना सम्भव नहीं होता लेकिन प्राणायाम किये जा सकते हैं । प्राणायाम करने से –
* रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ती है और इस शक्ति से कई रोगकारी जीवाणु मर जाते हैं ।
* विजातीय द्रव्य नष्ट हो जाते हैं और सजातीय द्रव्य बढ़ते हैं । इससे भी कई रोगों से बचाव हो जाता है ।
* वात-पित्त-कफ के दोषों का शमन होता है । अगर प्राण ठीक से चलने लगेंगे तो शरीर में वात-पित्त-कफ आदि के असंतुलन की जो गड़बड़ी है, वह ठीक होने लगेगी ।
जैसे उद्योग या पुरुषार्थ करने से दरिद्रता नहीं रहती, वैसे ही भगवत्प्रीत्यर्थ प्राणायाम करने से पाप नहीं रहते । जैसे प्रयत्न करने से धन मिलता है, वैसे ही प्राणायाम करने से आंतरिक सामर्थ्य, आंतरिक बल मिलता है, आरोग्य व प्राणबल, मनोबल और बुद्धिबल बढ़ता है ।
प्राणायाम का विशेष फायदा
हमारे फेफड़ों में असंख्य छिद्र हैं, जिनमें से सामान्य मनुष्य के थोड़े-से छिद्र ही काम करते हैं, बाकी बंद पड़े रहते हैं । इससे शरीर की रोगप्रतिकारक शक्ति कम हो जाती है । मनुष्य जल्दी बीमार और बूढ़ा हो जाता है । व्यसनों तथा बुरी आदतों के कारण भी शरीर की शक्ति जब शिथिल हो जाती है, रोगप्रतिकारक शक्ति कमजोर हो जाती है तो जो वायुकोश बंद पड़े होते हैं, उनमें जीवाणु पनपते हैं और शरीर पर हमला कर देते हैं, जिससे दमा और टी.बी. की बीमारी होने की सम्भावना बढ़ जाती है । परंतु जो लोग प्राणायाम करते हैं, गहरा श्वास लेते हैं उनके फेफड़ों के निष्क्रिय पड़े वायुकोशों को प्राणवायु मिलने लगती है और वे सक्रिय हो उठते हैं । फलतः शरीर की कार्य करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा रक्त शुद्ध होता है । नाड़ियाँ भी शुद्ध रहती हैं, जिससे मन भी प्रसन्न रहता है । इसीलिए सुबह, दोपहर और शाम को संध्या के समय प्राणायाम करने का विधान है । प्राणायाम से मन पवित्र व एकाग्र होता है, जिससे मनुष्य में बहुत बड़ा सामर्थ्य आता है ।
यदि कोई व्यक्ति 10-10 प्राणायाम तीनों समय करे और शराब, मांस, बीड़ी या अन्य व्यसनों व फैशन में न पड़े तो 40 दिन में तो उसको अनेक अनुभव होने लगेंगे । केवल 40 दिन प्रयोग करके देखिये । शरीर का स्वास्थ्य व मन बदला हुआ मिलेगा, जठराग्नि प्रदीप्त होगी, आरोग्यता व प्रसन्नता बढ़ेगी और स्मरणशक्तिवाला प्राणायाम करने से स्मरणशक्ति में जादुई विकास होगा ।
प्राणायाम से शरीर के कोशों की शक्ति बढ़ती है एवं जीवनशक्ति का विकास होता है । स्वामी रामतीर्थ प्रातःकाल में जल्दी उठते, प्राणायाम करतेे और फिर प्राकृतिक वातावरण में घूमने जाते थे । परमहंस योगानंदजी भी ऐसा ही करते थे । स्वामी रामतीर्थ बड़ी कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे । गणित उनका प्रिय विषय था । जब वे पढ़ते थे तब उनका नाम तीर्थराम था । एक बार परीक्षा में 13 प्रश्न दिये गये थे, जिनमें से केवल 9 प्रश्न हल करने थे । तीर्थराम ने तेरह-के-तेरह प्रश्न हल कर दिये और नीचे एक टिप्पणी लिख दी : ‘तेरह-के-तेरह प्रश्नों के उत्तर सही हैं । इनमें से कोई भी 9 जाँच लें ।’ इतना दृढ़ था उनका आत्मविश्वास ! प्राणायाम के अनेक लाभ हैं ।
प्रातः 3 से 5 बजे तक (ब्राह्ममुहूर्त के समय) जीवनीशक्ति विशेषरूप से फेफड़ों में क्रियाशील रहती है । इस समय प्राणायाम करने से फेफड़ों की कार्यक्षमता का खूब विकास होता है । शुद्ध वायु (ऑक्सीजन) और ऋण आयन विपुल मात्रा में मिलने से शरीर स्वस्थ व स्फूर्तिमान होता है ।
प्राणायाम में सावधानी रखें
दीक्षा देता हूँ तो 10 प्राणायाम का नियम बताता हूँ । बीमारी हो जाय तो बताऊँगा, ‘10 के बजाय 5 बार श्वास बाहर रोककर रखो और 5 बार अंदर रोक के रखो ।’ कई लोग ‘फूँ… फूँ…’ (भस्रिका जैसे प्राणायाम) खूब करते हैं, उससे चमत्कारिक फायदा हो जाता है परंतु खतरा ज्यादा है । बीमार की थोड़ी बीमारी मिटी-न मिटी लेकिन इससे (अपथ्य के कारण, वर्तमान आहार-विहार व जीवनशैली के कारण) तंदुरुस्त आदमी को भी बीमारियाँ हो सकती हैं और बीमार की बीमारी थोड़ी देर मिटे और फिर वह बीमार को ही ले के चल पड़े ऐसा क्यों करना ?
सिर पीछे की तरफ ले जाकर दृष्टि आकाश की ओर रखते हुए 20-25 प्राणायाम 3 बार करें (गहरा श्वास लें और छोड़ें) । इससे बुद्धि का, स्मरणशक्ति का विकास होगा । आँखें बंद करके सिर को नीचे की तरफ इस तरह झुकायें कि ठोढ़ी कंठकूप से लगी रहे और कंठकूप पर हलका-सा दबाव पड़े । इस स्थिति में 20-25 प्राणायाम (गहरा श्वास लें और छोड़ें) 3 बार करें तो मेधाशक्ति का विकास होगा । बाकी जो सवा से डेढ़ मिनट अंतर्कुम्भक और 45 से 50 सेकंड बहिर्कुम्भक वाले प्राणायाम की विधि बतायी है, वे 10 करो, बस हो गया । नहीं तो फिर ज्यादा प्राणायाम करते रहेंगे तो पित्त चढ़ जायेगा और फिर सूर्यकिरणों के समक्ष खुले में बैठ के प्राणायाम किये तो भी पित्त चढ़ जायेगा । आपके स्वभाव में गुस्सा आ जाय, मुँह सूखने लग जाय तो समझो पित्त अधिक है । और इस कारण बार-बार ठंडा पानी पियोगे तो फिर जठराग्नि मंद हो जायेगी, जल्दी बुढ़ापा आ जायेगा । ऐसा क्यों करना ? आप तो 5-25 प्राणायाम जानते हैं, मेरे गुरुदेव 64 प्रकार के प्राणायाम जानते थे, मैं उन गुरु का शिष्य हूँ फिर भी मैंने प्राणायामों को बाजारू नहीं बनाया क्योंकि आम आदमी जो बेचारा ब्रह्मचर्य पाल नहीं पाता, देशी गाय के शुद्ध घी का उपयोग कर नहीं सकता, वह यदि अधिक प्राणायाम करे तो हानि होगी ।’’
प्राणायाम हेतु शुद्ध वायु कैसे मिले ?
आज वनों की अंधाधुंध कटाई तथा कारखानों से निकलनेवाली विषैली गैसों से वायु-प्रदूषण इतना ज्यादा हो गया है कि शुद्ध व शक्तिशाली वायु मिलना मुश्किल हो गया है । वायु को शुद्ध व शक्तिशाली बनाने की सरल युक्ति पूज्यश्री के सत्संग में आती है : ‘‘प्रतिदिन हम लगभग एक किलो भोजन करते हैं, दो किलो पानी पीते हैं और 21,600 श्वास लेते हैं । 9,600 लीटर हवा लेते और छोड़ते हैं, उसमें से हम 10 किलो खुराक की शक्ति हासिल करते हैं । एक किलो भोजन से जो मिलता है, उससे 10 गुना ज्यादा हम श्वासोच्छ्वास से लेते हैं । ये बातें मैंने शास्त्रों से जानीं ।
मैं क्या करता हूँ कि गाय के गोबर और चंदन से बनी गौ-चंदन धूपबत्ती जलाता हूँ, फिर उसमें एरंड या नारियल का तेल अथवा देशी गाय के शुद्ध घी की बूँदें डालता रहता हूँ और कमरा बंद करके अपना नियम भी करता रहता हूँ । बाकी कपड़े उतारकर बस एक कच्छा पहने रहता हूँ और आसन-प्राणायाम करता हूँ तो रोमकूपों एवं श्वास के द्वारा धूपबत्ती से उत्पन्न शक्तिशाली प्राणवायु लेता हूँ ।’’
(क्रमशः) * RP-288-December-2016