पाँच पर्वों का झुमका
विश्व के जो भी मजहब, पंथ हैं, उनमें सबसे ज्यादा और सुखदायी पर्व हैं तो हिन्दुस्तान में, हिन्दू संस्कृति में हैं । उन सुखद और आनंददायी पर्वों में पर्वों का झुमका है तो दिवाली है । धनतेरस, नरक चतुर्दशी (काली चौदस), दिवाली, नूतन वर्ष, भाईदूज – यह पर्वों का पुंज है । इसमें जीव नित्य दिवाली मना सके ऐसा संकेत है ।
धनतेरस के दिन भगवान धन्वंतरि ने दुःखीजनों के रोग-निवारणार्थ आयुर्वेद का प्राकट्य किया था । इस दिन संध्या के समय घर के बाहर हाथ में जलता हुआ दीप लेकर भगवान यमराज की प्रसन्नता हेतु उन्हें इस मंत्र के साथ दीपदान करना चाहिए । इससे अकाल मृत्यु नहीं होती ।
मृत्युना पाशदण्डाभ्यां कालेन च मया सह ।
त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतामिति ।।
(स्कंद पुराण, वैष्णव खंड)
यमराज को दो दीपक दान करने चाहिए व तुलसी के आगे दीपक रखना चाहिए । इससे दरिद्रता मिटाने में मदद मिलती है ।
नरक चतुर्दशी और दीपावली की रात ‘मुक्तिकारक मुहूर्त’ माना गया है, यह जप-तप के लिए श्रेष्ठ है । नरक चतुर्दशी की रात में जप करने से मंत्र सिद्ध होता है । इस रात्रि को सरसों के तेल या देशी घी का दीया जला के उसका काजल उतारकर रखें तो वह काजल लगानेवाले व्यक्ति को नजर नहीं लगती, नेत्रज्योति में फायदा होता है तथा भूतबाधा भाग जाती है ।
दीपावली के दिन पटाखे फोड़ना, दीये जलाना यह उस अखंड ब्रह्म की ओेर संकेत है । दीये अनेक जगमगाते हैं, हजारों-लाखों नहीं करोड़ों-करोड़ों दीये जगमगाते हैं किंतु सभी दीयों में प्रकाश वही-का-वही । किस्म-किस्म के पटाखे फूटते हैं लेकिन गंधक सभीमें एक । मिठाइयों के स्वाद अनेक परंतु सबमें मिठास तत्त्व एक-का-एक । ऐसे ही चित्त अनेक, वृत्तियाँ अनेक, राग-द्वेष अनेक, भय, हर्ष, शोक अनेक लेकिन चैतन्य सत्ता एक-की-एक । यह दीपावली अनेक रंगों में, अनेक दीपों में, अनेक मिठाइयों में, अनेक पटाखों में, अनेक सुखाकार, दुःखाकार, लोभाकार, मोहाकार चित्त-वृत्तियों में, अनेक अवस्थाओं में ज्ञान देवता एक का संदेश देती है ।
दिवाली का आध्यात्मिकीकरण
ये ऐहिक दिवालियाँ ऐहिक हर्ष देती हैं लेकिन ऐहिक दिवाली का निमित्त साधकर आध्यात्मिक दिवाली मनाने का जो लोग उद्देश्य बनाते हैं, वे धनभागी हैं । जैसे दिवाली में चार काम करते हैं – साफ-सफाई करते हैं, नयी चीज लाते हैं, दीये जलाते हैं, मिठाई खाते-खिलाते हैं । घर साफ-सूफ करते हैं, ऐसे अपना साफ इरादा कर दो कि हमको इसी जन्म में परमात्म-सुख, परमात्म-ज्ञान, परमात्म-आनंद, परमात्म-माधुर्य पाना है ।
दूसरा काम नयी चीज लाना । जैसे घरों में चाँदी, कपड़े या बर्तन आदि खरीदे जाते हैं, ऐसे ही अपने चित्त में उस परमात्मा को पाने के लिए कोई दिव्य, पवित्र, आत्मसाक्षात्कार में सीधा साथ दे ऐसा जप, ध्यान, शास्त्र-पठन आदि का व्रत-नियम ले लेना चाहिए । जैसे गांधीजी ने अपने जीवन में व्रत रख दिया था, हफ्ते में एक दिन न बोलने का व्रत, ब्रह्मचर्य का व्रत, सत्य का व्रत, प्रार्थना का व्रत… ऐसे ही कोई ऐसा व्रत आप अपने जीवन में, अपने चित्त में रख दें जिस व्रत से सर्वदुःखनाशक और परम सुख, शाश्वत सुख प्राप्त हो, अपने लक्ष्य की तरफ दृढ़ता से चल सकें और अपना ईश्वरीय अंश विकसित कर सकें ।
तीसरा काम है आप दीये जलाते हैं । बाह्य दीयों के साथ आप ज्ञान का दीया जलाओ । हृदय में है तो आत्मा है और सर्वत्र है तो परमात्मा है । जैसे घड़े में है तो घटाकाश है, सर्वत्र है तो महाकाश है । वह परमात्मा दूर नहीं, दुर्लभ नहीं, परे नहीं, पराया नहीं, सबका अपना-आपा है । ॐ नमो भगवते वासुदेवाय । उस वासुदेव के नजरिये से, ज्ञान के नजरिये से अपने ज्ञानस्वरूप में जगो । व्यर्थ का खर्च न करो, व्यर्थ का बोलो नहीं, व्यर्थ का सोओ नहीं, ज्यादा जगो नहीं, युक्ताहारविहारस्य… ज्ञान का दीप जलाओ ।
चौथी बात मिठाई खाना और खिलाना है । आप प्रसन्न रहिये । सुबह गहरा श्वास लेकर सवा मिनट रोकिये और ‘मैं आनंदस्वरूप ईश्वर का हूँ और ईश्वर मेरे हैं ।’ – यह चिंतन करके दुःख, अशांति और नकारात्मक विचारों को फूँक मार के बाहर फेंक दो । ऐसा दस बार करो, आप मीठे रहेंगे, अंतरात्मदेव के ध्यान की, वैदिक चिंतन की मिठाई खायेंगे और आपके सम्पर्क में आनेवाले भी मधुर हो जायेंगे, उन्हें भी प्रेमाभक्ति का रस मिलेगा ।
सुख-सम्पदा-आरोग्य बढ़ाने हेतु
(१) दीपावली के दिन नारियल व खीर की कटोरी लेकर घर में घूमें । घर के बाहर नारियल फोड़े और खीर ऐसी जगह पर रखें कि कोई जीव-जंतु या गाय खाये तो अच्छा है, नहीं तो और कोई प्राणी खाये । इससे घर में धन-धान्य की बरकत में लाभ होता है ।
(२) घर के बाहर हल्दी और चावल के मिश्रण या केवल हल्दी से स्वस्तिक अथवा ॐकार बना दें । यह घर को बाधाओं से सुरक्षित रखने में मदद करता है । द्वार पर अशोक और नीम के पत्तों का तोरण (बंदनवार) बाँध दें । उससे पसार होनेवाले की रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी ।
(३) आज के दिन सप्तधान्य उबटन (पिसे हुए गेहूँ, चावल, जौ, तिल, चना, मूँग और उड़द से बना मिश्रण) से स्नान करने पर पुण्य, प्रसन्नता और आरोग्यता की प्राप्ति होती है । दिवाली के दिन अथवा किसी भी पर्व के दिन गोमूत्र से रगड़कर स्नान करना पापनाशक स्नान होता है ।
(४) इन दिनों में चौमुखी दीये जलाकर चौराहे पर चारों तरफ रख दिये जायें तो वह भी शुभ माना जाता है ।
(५) दीपावली की रात को घर में लक्ष्मीजी के निवास के लिए भावना करें और लक्ष्मीजी के मंत्र का भी जप कर सकते हैं । मंत्र :
ॐ नमो भाग्यलक्ष्म्यै च विद्महे ।
अष्टलक्ष्म्यै च धीमहि । तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।
(६) घी, गुड़, चंदन-चूरा, देशी कपूर, गूगल, चावल, जौ और तिल – इन आठ चीजों का मिश्रण करके अगर कुटुम्ब के लोग दिवाली की रात जले हुए गाय के गोबर के कंडे पर पाँच-पाँच आहुतियाँ डालते हैं तो उस घर में सम्पदा और सुसंवादिता की सम्भावना बढ़ जाती है । मंत्र – ॐ स्थानदेवताभ्यो नमः । ॐ ग्रामदेवताभ्यो नमः । ॐ कुलदेवताभ्यो नमः। फिर विशेष रूप से दो अथवा पाँच आहुतियाँ लक्ष्मीजी के लिए डालें ।
(७) घर में विसंवादिता मिटाने के लिए गौ-चंदन अगरबत्ती पर देशी गाय का घी डाल के जलायें, घर के लोग मिलकर ‘हरि ॐ’ का गुंजन करें । दीवाल पर या कहीं भी अपने नेत्रों की सीध में इष्टदेवता या सद्गुरु के नेत्र हों, उन्हें एकटक देखें और आसन बिछाकर ऐसी ध्वनि (ॐकार का गुंजन) करें । और दिनों में नहीं कर सकें तो दिवाली के पाँच दिन तो अवश्य करें, इससे घर में सुख-सम्पदा का वास होगा । परंतु यह है शरीर का घर, तुम्हारा घर तो ऐसा है कि महाराज ! सारी सुख-सम्पदाएँ वहीं से सबको बँटती रहती हैं और कभी खूटती नहीं । उस अपने आत्म-घर में आने का भी इरादा करो ।
नूतन वर्ष : दीपावली वर्ष का आखिरी दिन है और नूतन वर्ष प्रथम दिन है । यह दिन आपके जीवन की दैनंदिनी का पन्ना बदलने का दिन है ।
नूतन वर्ष कैसे मनायें ?
भीष्म पितामह ने राजा युधिष्ठिर से कहा :
यो यादृशेन भावेन तिष्ठत्यस्यां युधिष्ठिर ।
हर्षदैन्यादिरूपेण तस्य वर्षं प्रयाति वै ।।
‘हे युधिष्ठिर ! आज नूतन वर्ष के प्रथम दिन जो मनुष्य हर्ष में रहता है, उसका पूरा वर्ष हर्ष में जाता है और जो शोक में रहता है, उसका पूरा वर्ष शोक में व्यतीत होता है ।’
‘जो साक्षीस्वरूप है, ज्ञानस्वरूप है, चैतन्यस्वरूप है, जो सुख-दुःख का द्रष्टा है, अनंत ब्रह्मांडों की उथल-पाथल हो जाय फिर भी जो ज्यों-का-त्यों रहता है, उस आत्मदेव की हम उपासना करते हैं ।’ – ऐसा चिंतन करके दिवाली की रात सो जाओ और सुबह होगी तुम्हारी ऐ… भक्ति का पुंज ! प्रभात को जब उठोगे तो नये वर्ष में प्रवेश करोगे और नये वर्ष में नयी उमंग, उत्साह, शांति… जो चैतन्य है वह नित्य नवीन है, नित्य ज्ञानस्वरूप, आनंदस्वरूप, शाश्वत है और जो माया है, उसमें परिवर्तन होता है । परिवर्तन होता है परमात्मा की प्रकृति में, परमात्मा में परिवर्तन नहीं होता । तो हम उसी परमात्मा का ध्यान करते हैं जो नित्य नूतन रहते हैं, जो नित्य एकरस हैं । ॐ शांति… ॐ आनंद…
नूतन वर्ष में पुण्यदायी दर्शन
आज के दिन पुण्यमय वस्तुओं के दर्शन का भी शास्त्र मेंŸउल्लेख है । परम पुण्यमय तो भगवान हैं और भगवान को पाये हुए संत-महापुरुष ही हैं । लेकिन जिनको संत-दर्शन नहीं मिल पाते उनके लिए देवमूर्ति, शास्त्र, जौ, बछड़े को दूध पिलाती गाय, फलों से भरी हुई टोकरी, दीपक, चंदन, असली हीरा, गाय का घी, दूध, दही, गोझरण, नये सात्त्विक वस्त्र, जल से भरा हुआ कुम्भ आदि का दर्शनŸ हितकारी, सुखदायी व शुभ माना जाता है ।
भाईदूज यह पर्वपुंज का पाँचवाँ दिन है । भाईदूज का पर्व हमारे मन को उन्नत रखता है और परस्पर संकल्प देकर सुरक्षित भी करता है । कोई बहन ऐसा नहीं चाहती कि मेरा भैया साधारण रहे, इसलिए बहन भाई के ललाट पर तिलक करती है और संकल्प करती है कि ‘मेरा भैया त्रिलोचन बने, विकारों में न गिरे, सूझबूझ बढ़ाये, सुख-दुःख में सम रहे और ॐकारस्वरूप ईश्वर की शक्ति जाग्रत करे ।’
(दीपावली पर लक्ष्मीप्राप्ति की साधना-विधि के लिए आश्रम से प्रकाशित ‘सदा दिवाली’ और ‘पर्वों का पुंज दीपावली’ पुस्तकें पढ़ें ।)
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