
मंत्रजाप का प्रभाव
तुलसीदासजी ने कहा है कि :-
कृतजुग त्रेताँ द्वापर पूजा मख अरु जोग।
जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग।।
‘सतयुग, त्रेता और द्वापर में जो गति पूजा, यज्ञ और योग से प्राप्त होती है, वही गति कलियुग में लोग केवल भगवन्नाम के गुणगान से पा जाते हैं।’
(श्रीरामचरित. उ. का. 102 ख)
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा।
गावत नर पावहिं भव थाहा।।
‘कलियुग में तो केवल श्रीहरि के गुणगाथाओं का गान करने से ही मनुष्य भवसागर की थाह पा जाते हैं।’
जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिः जपात् सिद्धिर्न संशयः।
जप में चार बातें आवश्यक हैं-
श्रद्धा
तत्परता
संयम
एकाग्रता
शब्दों का गुंथन
ब्रह्मज्ञानी गुरुओं से मंत्र ले रखा है उन्हें प्रेतयोनि में भटकना नहीं पड़ता। जैसे, पुण्य और पाप मरने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ते, ऐसे ही ब्रह्मवेत्ता द्वारा प्रदत्त गुरुमंत्र भी साधक का पीछा नहीं छोड़ता। जैसे – कबीर जी को उनके गुरु से ‘राम-राम’ मंत्र मिला। ‘राम-राम’ मंत्र तो रास्ते जाते लोग भी दे सकते हैं किंतु उसका इतना असर नहीं होता परंतु पूज्यपाद रामानंद स्वामी ने जब कबीर जी को ‘राम-राम’ मंत्र दिया तो कबीर जी कितनी ऊँचाई पर पहुँच गये, दुनिया जानती है। तुलसीदास जी ने कहा हैः
मंत्रजाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो वेद प्रकासा।।
(श्रीरामचरित. अर. कां. 35.1)
अभी डॉ. लिवर लिजेरिया व दूसरे चिकित्सक कहते हैं कि ह्रीं, हरि, ॐ आदि मंत्रों के उच्चारण से शरीर के विभिन्न भागों पर भिन्न-भिन्न असर पड़ता है। डॉ. लिवर लिजेरिया ने तो 17 वर्षों के अनुभव के पश्चात् यह खोजा कि ‘हरि’ के साथ अगर ‘ॐ’ शब्द को मिलाकर उच्चारण किया जाये तो पाँचों ज्ञानेन्द्रियों पर उसका अच्छा प्रभाव पड़ता है वह निःसंतान व्यक्ति को मंत्र के बल से संतान प्राप्त हो सकती है जबकि हमारे भारत के ऋषि-मुनियों ने इससे भी अधिक जानकारी हजारों-लाखों वर्ष पहले शास्त्रों में वर्णित कर दी थी। हजारों वर्ष पूर्व हमारे साधु-संत जो आसानी से कर सकते थे उस बात पर विज्ञान अभी कुछ-कुछ खोज रहा है।