जब पुरुष अपने-आपको अकर्ता और अभोक्ता निश्चय कर लेता है अर्थात् अपने अकर्तापने को, अभोक्तापने को जान लेता है, तब उसकी सम्पूर्ण चित्तवृत्तियाँ निश्चय करके क्षीण यानी शांत हो जाती हैं । उसके दोष दूर हो जाते हैं ।
प्रश्नकर्त्री : बापूजी ! मुझे अक्सर बहुत भय लगता है, पता नहीं क्यों ?
वैद्याचार्य, आयुर्वेद के जानकार पंचसकार चूर्ण देते हैं । पंचसकार चूर्ण पेट के तमाम रोगों को मिटा देता है, स्वास्थ्यदायक है । जैसे पंचसकार चूर्ण स्वास्थ्य के लिए हितकारी है ऐसे ही साधना में भी ‘पंचसकार’ परमात्मप्राप्ति में बहुत...
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पूज्य बापूजी एकादशी के बारे में एक वैज्ञानिक रहस्य बताते हुए कहते हैं : ‘‘संत डोंगरेजी महाराज बोलते थे कि एकादशी के दिन चावल नहीं खाना चाहिए । जो खाता है, समझो वह एक-एक चावल का दाना खाते समय...
हमारी पावन संस्कृति में सद्गुरु-पूजन की प्राचीन परम्परा है । सद्गुरु का पूजन उनके ज्ञान का, आदर्शों का, सत्य का पूजन है, उनके अनुभवों और विचारों का पूजन है, परब्रह्म-परमात्मा का पूजन है ।
चतुर्मास में ईर्ष्यारहित होना चाहिए । इन दिनों में परनिंदा सुनने व करने से अन्य दिनों की अपेक्षा बड़ा भारी पाप लगता है ।
गुरु मंत्रदीक्षा के द्वार शिष्य की सुषुप्त शक्ति को जगाते हैं । दीक्षा का अर्थ है: ‘दी’ अर्थात जो दिया जाय, जो ईश्वरीय प्रसाद देने की योग्यता रखते हैं तथा ‘क्षा’ अर्थात जो पचाया जाय या जो पचाने की...
जिसने चतुर्मास में संयम करके अपना साधन-भजन का धन नहीं इकट्ठा किया मानो उसने अपने हाथ से अमृत का घड़ा गिरा दिया। और मासों की अपेक्षा चतुर्मास में बहुत शीघ्रता से आध्यात्मिक उन्नति होती है।
भावार्थ रामायण में आता है कि महर्षि वसिष्ठजी द्वारा रामजी को आत्मज्ञान का उपदेश मिला और वे आत्मानंद में मग्न हो गये । तत्पश्चात् अद्वैत आनंद-प्रदाता सद्गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए श्रीरामजी कहते हैं : ‘‘हे गुरुदेव...
बोलते हैं : ‘भगवान सर्वभाषाविद् हैं । भगवान सारी भाषाएँ जानते हैं ।’ भाषाएँ तो मनुष्य-समाज ने बनायीं, तो क्या भगवान उनसे सीखने को आये ? नहीं । तो भगवान सर्वभाषाविद् कैसे हुए ?