जामुन दीपक, पाचक, स्तंभक तथा वर्षा ऋतु में अनेक उदर रोगों में उपयोगी है। जामुन में लोह तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होता है अत: पीलिया के रोगियों के लिये जामुन का सेवन हितकारी है ।
ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक दुर्बलता को प्राप्त हुए शरीर को वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त होने लगता है। आर्द्र (नमीयुक्त) वातावरण जठराग्नि को मंद कर देता है।
खीरा एवं ककड़ी जहाँ गर्मियों में विशेष लाभकारी हैं, वहीं ककड़ी एव विशेषतः खीरे के बीज पौष्टिक होने के साथ कई प्रकार की बीमारियों में भी बहुत उपयोगी हैं। खीरे के बीजों को सुखाकर छील के रख लें ।
पका आम खाने से सातों धातुओं की वृद्धि होती है। पका आम दुबले-पतले बच्चों, वृद्धों व कृश लोगों को पुष्ट बनाने हेतु सर्वोत्तम औषध और खाद्य फल है।
यहाँ कुछ ऐसे पदार्थ दिये जा रहे हैं जिनका सेवन भिगोकर करने से वे सुपाच्य व विशेष गुणकारी बनते हैं । भिगोये हुए इन पदार्थों में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होती है । परंतु आयुर्वेद...
अमरूद शीत ऋतु का स्वादिष्ट, पुष्टिकर मौसमी फल है । अमरूद के लाभ (1) अमरूद शक्तिदायक, कफ-वीर्यवर्धक तथा वायु व पित्त शामक है ।
तिल स्निग्ध, उष्ण, उत्तम वायुशामक, कफ-पित्तवर्धक, पचने में भारी, बल-बुद्धि व जठराग्नि वर्धक, त्वचा, बाल तथा दाँतों के लिए हितकारी हैं । (अष्टांगहृदय, सुश्रुत संहिता)
शाकों में बथुआ श्रेष्ठ है । इसमें पौष्टिक तत्त्वों के साथ विविध औषधीय गुणधर्म भी पाये जाते हैं । यह उत्तम पथ्यकर है । आयुर्वेद के अनुसार बथुआ त्रिदोषशामक, रुचिकारक, स्वादिष्ट एवं भूखवर्धक तथा पचने में हलका होता है...
शरद पूनम की रात को आप जितना दूध उतना पानी मिलाकर आग पर रखो और खीर बनाने के लिए उसमें यथायोग्य चावल तथा शक्कर या मिश्री डालो । पानी वाष्पीभूत हो जाय, केवल दूध और चावल बचे, बस खीर...
शरद ऋतु में ध्यान देने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें : (1) रोगाणां शारदी माता । रोगों की माता है यह शरद ऋतु । वर्षा ऋतु में संचित पित्त इस ऋतु में प्रकुपित होता है । इसलिए शरद पूर्णिमा की चाँदनी...
आयुर्वेद के अनुसार ताजी, कोमल, छोटी मूली रुचिकारक, भूखवर्धक, त्रिदोषशामक, पचने में हलकी, तीखी, हृदय के लिए हितकर तथा गले के रोगों में लाभदायी है ।
दायें पैर के तलवे की बायीं हथेली से और बायें पैर के तलवे की दाहिनी हथेली से रोज (प्रत्येक तलवे की) 2-4 मिनट सरसों के तेल या घी से मालिश करें । यह प्रयोग न केवल कई रोगों से...
काली मिर्च गर्म, रुचिकर, पचने में हलकी, भूखवर्धक, भोजन पचाने में सहायक तथा कफ एवं वायु को दूर करनेवाली है । यह खाँसी, जुकाम, दमा, अजीर्ण, अफरा, पेटदर्द, कृमिरोग, चर्मरोग, आँखों के रोग, पेशाब-संबंधी तकलीफों, भूख की कमी, यकृत...
किसी भी प्रकार के वातरोग के लिए यह उपाय आजमाया जा सकता है : पहली उँगली (तर्जनी) हाथ के अँगूठे के ऊपरी सिरे पर रखो और तीन उँगलियाँ सीधी रखो ।
वर्षा ऋतु वायु की प्रधानता की ऋतु है । इन दिनों में सूर्य की किरणें कम मिलने से जठराग्नि मंद होकर अन्न का पाचन कम होता है और शरीर में कच्चा रस (आम) उत्पन्न होने लगता है ।
यथा सुराणाममृतं सुखाय तथा नराणां भुवि तक्रमाहुः । ‘जिस प्रकार स्वर्ग में देवों को सुख देनेवाला अमृत है, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को सुख देनेवाला तक्र है ।’ (भावप्रकाश)
नींबू उत्तम पित्तशामक, वातानुलोमक, जठराग्निवर्धक व आमपाचक है । यहअम्लरसयुक्त (खट्टा) होने पर भी पेट में जाने के बाद मधुर हो जाता है ।
त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषशामक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषतः नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकनेवाला व मेधाशक्ति बढ़ानेवाला है ।
लाभ : * यह श्वासकोशों के दोषों का निवारण करती है ।
रात को किशमिश के दो दाने धोकर ग्लास में रख दें और उसमें एक नींबू निचोड़ कर रस डाल दें तथा रात-भर रखा रहने दें । अगले दिन सुबह मंजन करने के बाद उसे पी लो । अपने को...
कान के रोग : तुलसी की पत्तियों को ज्यादा मात्रा में लेकर सरसों के तेल में पकायें । पत्तियाँ जल जाने पर तेल उतार कर छान लें । ठंडा होने पर इस तेल की 1-2 बूंदें कान में डालने...
बाजरे के आटे में तिल मिलाकर बनायी गयी रोटी पुराने गुड़ व घी के साथ खाना, यह शक्ति-संवर्धन का उत्तम स्रोत है। 100 ग्राम बाजरे से 45 मि.ग्रा कैल्शियम, 5 मि.ग्रा. लौह व 361 कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती है।...