जीवन यात्रा

आसुमल से संत श्री आशारामजी बापू

श्री आशारामजी बापू का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रान्‍त के नवाबशाह जिले के बेरानी गाँव में “आसुमल” के रूप में हुआ था । हिंदू धर्म और भारत के प्रति लगाव के कारण 1947 में देश विभाजन के फलस्‍वरूप उनका परिवार अपनी संपूर्ण सम्पत्ति छोड़कर अहमदाबाद आ गया। उनमें बचपन से ही योगाभ्‍यास और आत्मज्ञान के प्रति गहरा लगाव था|

छोटी उम्र से ही उनमें ईश्वर-प्राप्ति की तड़प थी जिसके कारण ही वे अपने गुरु साईं श्री लीलाशाहजी महाराज के पास पहुँचे।  परम दयालु साईं श्री लीलाशाहजी महाराज ने उन्हें साधना विधियां सिखाई । प्रखर आध्यात्मिक साधना करते हुए विक्रम संवत 2021 के अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया (तदनुसार 7 अक्टूबर 1964) को मध्यान्‍ह  2.30 बजे गुरुकृपा से उन्‍हे आत्म-साक्षात्कार हुआ । पूर्ण गुरु ने अपने  प्यारे  शिष्य को गुरु-तत्त्व में प्रतिष्ठित कर दिया | आसुमल, संत श्री आशारामजी बापू बन गये ।

 

जीवन यात्रा

आसुमल से संत श्री आशारामजी बापू

श्री आशारामजी बापू का जन्म अविभाजित भारत के सिंध प्रान्‍त के नवाबशाह जिले के बेरानी गाँव में “आसुमल” के रूप में हुआ था । हिंदू धर्म और भारत के प्रति लगाव के कारण 1947 में देश विभाजन के फलस्‍वरूप उनका परिवार अपनी संपूर्ण सम्पत्ति छोड़कर अहमदाबाद आ गया। उनमें बचपन से ही योगाभ्‍यास और आत्मज्ञान के प्रति गहरा लगाव था|

छोटी उम्र से ही उनमें ईश्वर-प्राप्ति की तड़प थी जिसके कारण ही वे अपने गुरु साईं श्री लीलाशाहजी महाराज के पास पहुँचे।  परम दयालु साईं श्री लीलाशाहजी महाराज ने उन्हें साधना विधियां सिखाई । प्रखर आध्यात्मिक साधना करते हुए विक्रम संवत 2021 के अश्विन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया (तदनुसार 7 अक्टूबर 1964) को मध्यान्‍ह  2.30 बजे गुरुकृपा से उन्‍हे आत्म-साक्षात्कार हुआ । पूर्ण गुरु ने अपने  प्यारे  शिष्य को गुरु-तत्त्व में प्रतिष्ठित कर दिया | आसुमल, संत श्री आशारामजी बापू बन गये ।