
यह “सम: समम् शमयति” या “समरूपता” दवा सिद्धांत पर आधारित एक चिकित्सीय प्रणाली है। यह दवाओं द्वारा रोगी का उपचार करने की एक ऐसी विधि है, जिसमें किसी स्वस्थ व्यक्ति में प्राकृतिक रोग का अनुरूपण करके समान लक्षण उत्पन्न किया जाता है, जिससे रोगग्रस्त व्यक्ति का उपचार किया जा सकता है।
होमियोपथों के खोजकर्ता डॉ सेम्युल हेहनीमेन मुलतः एक एलोपेथ थे, जो अपनी चिकित्सा प्रणाली से असंतुष्ट थे । पुराने शास्त्रों का अध्ययन करते
समय उन्होंने होमियोपैथी के विषय पाये, जिनके प्रयोग से उन्हें अच्छे परिणाम मिले और उन्होंने इस चिकित्सा प्रणाली का विकास किया । होमिओपैथो एक पूर्ण चिकित्सा पद्धती है जो सुरक्षित, सरल व असरकारक है । यह व्यक्ति के प्राकृतिक स्वस्थ की पूर्ति करने में सहायता करता है – जिन बिमारियों से वह त्रस्त हो रहा है । शरीर की बिमारियों से लड़ने की अपनी ही रोग-प्रतिकारक शक्ति होती है , जिसे होमियोपैथो चिकित्सा बढाती है । यह चिकित्सा पद्धती सभी को लाभान्वित क्र सकती है ।
होमियोपैथो कुछ ही बिमारियों के लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि विश्व की सारी बिमारियों में उपयुक्त है ।
एलर्जिक बिमारियों में अनेक प्रकार की त्वचा की बिमारियों जैसे कि अट्रीकेरिया (शीतपित्त), एक्जीमा, आदि में यह अत्यंत असरकारक है । साथ-ही-साथ शारीरिक-मानसिक असंतुलन जैसे कि माइग्रेन,अस्थमा, एसिडिटी, पेप्टिक अल्सर, एलर्जी, अल्सरेटिव कोलाइटिस, एलर्जिक ब्रोंकईटिस, किडनी व पिशाब संबंधी रोग, नस-नाड़ियों के रोग, श्वास के व पेट सबंधी तकलीफों, आदि का सफलता से उपचार होता है ।
शरीर में उत्पन्न बिमारियों के कारण का मानसिकता से कैसा संबंध है यह होमियोपैथो अच्छे से पहचानती है । हर प्रकरण में मरीज की मानसिक व शारीरिक
स्थिति की जाँच करके ही उसके अनुकूल दवाई दी जाती है , जिससे बीमारी समूल नष्ट हो जाती है ।
होमियोपैथो केवल लाक्षणिक बीमारी का उपचार न करके पुरे व्यक्ति का उपचार करती है । होमियोपैथो दवाईयां मानसिक बा भावनात्मक असंतुलित स्थिति का भी उपचार करती है ।
होम्योपैथिक उत्पाद पौधों (जैसे लाल प्याज, अर्निका [पर्वत जड़ी बूटी], ज़हर आइवी, बेलाडोना [घातक नाइटशेड], और चुभने वाले बिछुआ), खनिज (जैसे सफेद आर्सेनिक), या जानवरों (जैसे कुचली हुई पूरी मधुमक्खियाँ) से आते हैं।
होम्योपैथी कठोर तनुकरण और मिश्रण पर आधारित है, जिसे उत्तराधिकार कहा जाता है । दवा की बोतल पर कमजोर पड़ने का स्तर छपा होता है। एक सामान्य होम्योपैथिक तनुकरण 30X है, जहां X 10 का प्रतिनिधित्व करता है। इसलिए, एक भाग विष (जैसे कि उपरोक्त ज़हर आइवी) को 10 भाग पानी या अल्कोहल के साथ मिलाया जाता है।
इसे निगलने व चबाने की बजाय चूसकर ही खाएं क्योंकि दवा का असर जीभ के जरिये होता है. दवा खाने के 5-10 मिनट बाद तक कुछ न खाएं. होम्योपैथी दवाओं का असर इस बात पर निर्भर करता है कि मरीज का रोग एक्यूट है या क्रॉनिक. एक्यूट रोगों में यह 5 से 30 मिनट और क्रॉनिक बीमारियों में यह 5 से 7 दिन में असर दिखाती है
एलर्जिक बिमारियों में अनेक प्रकार की त्वचा की बिमारियों जैसे कि अट्रीकेरिया (शीतपित्त), एक्जीमा, आदि में यह अत्यंत असरकारक है । साथ-ही-साथ शारीरिक-मानसिक असंतुलन जैसे कि माइग्रेन,अस्थमा, एसिडिटी, पेप्टिक अल्सर, एलर्जी, अल्सरेटिव कोलाइटिस, एलर्जिक ब्रोंकईटिस, किडनी व पिशाब संबंधी रोग, नस-नाड़ियों के रोग, श्वास के व पेट सबंधी तकलीफों, आदि का सफलता से उपचार होता है ।
शरीर में उत्पन्न बिमारियों के कारण का मानसिकता से कैसा संबंध है यह होमियोपैथो अच्छे से पहचानती है । हर प्रकरण में मरीज की मानसिक व शारीरिक
स्थिति की जाँच करके ही उसके अनुकूल दवाई दी जाती है , जिससे बीमारी समूल नष्ट हो जाती है ।
होमियोपैथो केवल लाक्षणिक बीमारी का उपचार न करके पुरे व्यक्ति का उपचार करती है । होमियोपैथो दवाईयां मानसिक बा भावनात्मक असंतुलित स्थिति का भी उपचार करती है ।
क्या करे –
– दवाई को हाथ लगाए बिना ढक्कन या चम्मच में लें ।
– दवाई खाली पेट ले, यानी दवाई के आधे घंटे बाद कुछ लें ।
– दवाई को चूसें, चबाए नहीं ।
– दवाई लेने से पूर्व साफ़ पानी से कुल्ला कर ले ।
क्या न करे –
-दवाई लेते समय उसे हाथों से न छुए ।
– दवाई के दौरान प्याज, लहसून, हिंग, कॉफ़ि, अनानस व मादक पदार्थ का सेवन न करें ।
– तेज खुशबु वाली वस्तुओं से दूर रहें ।