खरबूजा गर्मियों का एक गुणकारी फल है । यह शरीर में पानी की कमी को दूर करता है और उसे तरोताजा बनाये रखता है । खरबूजा सेहत से जुड़ी कई समस्याओं को दूर करने में मददगार है । यह...
देशी गुड़ स्निग्ध, बल-वीर्यवर्धक, वात-पित्तशामक, पचने में भारी, मूत्र की शुद्धि करनेवाला एवं नेत्र-हितकर है । यह हड़्डियों और मांसपेशियों को सशक्त बनाने में सहायक है ।
ग्रीष्म ऋतु का प्रारम्भ होते ही असहनीय गर्मी तथा उससे जुड़ी समस्याओं, जैसे - थकान, शरीर में तथा पेशाब में जलन, अपच, दस्त, आँख आना (conjunctivitis), मूत्र-संक्रमण (urinary tract infection), चक्कर आना, लू लगना आदि का प्रादुर्भाव होता है...
प्रकृति के सर्वोत्तम एंटी ऑक्सीडेंट और इम्यूनिटी बूस्टर गौझरण से निर्मित ‘संजीवनी रस’ एक सुधुर व सुगंधित पेय है । यह जंगलों में चरते हुए अनेक प्रकार की जड़ी-बूटियों का सेवन करनेवाली उत्तम नस्ल की ‘गीर’ गायों से प्राप्त...
सहजन (मुनगा) के पेड़ का हर अंग स्वास्थ्य के लिए बहुत लाभदायी है । इसके पत्तों, फूलों तथा फलियों की सब्जी स्वादिष्ट होने के साथ-साथ स्वास्थ्य-हितकर भी है । सहजन के पत्ते, जड़ और छाल 300 से अधिक रोगों...
40 प्रतिशत लोगों को खर्राटे थकान के कारण आते हैं और 60 प्रतिशत लोगों को जो खर्राटे आते हैं वे संकेत देते हैं कि शरीर में रोग जमा हो रहा है । इसका जल्दी इलाज करो, नहीं तो हृदयाघात...
प्रदीप्त जठराग्नि के कारण शीत ऋतु पौष्टिक व बलवर्धक आहार-सेवन के लिए अनुकूल होती है । इस ऋतु में रुक्ष पदार्थों के सेवन एवं अति अल्पाहार से व अधिक उपवास से शारीरिक धातुओं का ह्रास होकर शरीर दुर्बल हो...
पुरुषों के लिए जितनी इंच लम्बाई उतना वजन उचित है (जैसे ६५ इंच कद हो तो वजन लगभग ६५ किलो होना चाहिए) । महिलाओं के लिए जितनी इंच लम्बाई उससे ३ से ५ किलो कम वजन उचित है ।
खजूर मधुर, शीतल, पौष्टिक व सेवन करने के बाद तुरंत शक्ति-स्फूर्ति देनेवाला है । यह रक्त, मांस व वीर्य की वृद्धि करता है । हृदय व मस्तिष्क को शक्ति देता है । वात, पित्त व कफ इन तीनों दोषों...
शीत ऋतु में पाचनशक्ति प्रबल रहती है। अतः इस समय लिया गया पौष्टिक व बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है। आइये, इस ऋतु में अपनी सेहत बनाने के लिए कुछ सरल प्रयोग...
चिरौंजी या चारोली बल-वीर्यवर्धक, वात-पित्तनाशक, शीतल, हृदय के लिए हितकर एवं त्वचा-विकारों में लाभदायी है । यह मधुर, पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होने से व्यंजनों, मिठाइयों, ठंडाई आदि में प्रयोग की जाती है ।
कढ़ी पत्ता (मीठा नीम) सुगंधित, स्वादिष्ट, भूखवर्धक व पाचक है । इसमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह, विटामिन ए, बी एवं एंटी ऑक्सीडेंट्स पाये जाते हैं, जिससे इसके सेवन से हड्डियाँ, दाँत व बालों की जड़ें मजबूत होती...
स्वास्थ्य एवं दीर्घायु प्रदायक एक बहुश्रुत औषधि है - त्रिफला चूर्ण । आँवला, बहेड़ा और हरड़ के सम्मिश्रण से बना यह चूर्ण त्रिदोषशामक, विशेषरूप से कफ-पित्तशामक, नेत्रों के लिए परम हितावह, जठराग्नि-प्रदीपक, भोजन में रुचि उत्पन्न करनेवाला, पेट साफ...
जामुन दीपक, पाचक, स्तंभक तथा वर्षा ऋतु में अनेक उदर रोगों में उपयोगी है। जामुन में लोह तत्त्व पर्याप्त मात्रा में होता है अत: पीलिया के रोगियों के लिये जामुन का सेवन हितकारी है ।
ग्रीष्म ऋतु में अत्यधिक दुर्बलता को प्राप्त हुए शरीर को वर्षा ऋतु में धीरे-धीरे बल प्राप्त होने लगता है। आर्द्र (नमीयुक्त) वातावरण जठराग्नि को मंद कर देता है।
खीरा एवं ककड़ी जहाँ गर्मियों में विशेष लाभकारी हैं, वहीं ककड़ी एव विशेषतः खीरे के बीज पौष्टिक होने के साथ कई प्रकार की बीमारियों में भी बहुत उपयोगी हैं। खीरे के बीजों को सुखाकर छील के रख लें ।
पका आम खाने से सातों धातुओं की वृद्धि होती है। पका आम दुबले-पतले बच्चों, वृद्धों व कृश लोगों को पुष्ट बनाने हेतु सर्वोत्तम औषध और खाद्य फल है।
यहाँ कुछ ऐसे पदार्थ दिये जा रहे हैं जिनका सेवन भिगोकर करने से वे सुपाच्य व विशेष गुणकारी बनते हैं । भिगोये हुए इन पदार्थों में पोषक तत्त्वों की उपलब्धता अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होती है । परंतु आयुर्वेद...
अमरूद शीत ऋतु का स्वादिष्ट, पुष्टिकर मौसमी फल है । अमरूद के लाभ (1) अमरूद शक्तिदायक, कफ-वीर्यवर्धक तथा वायु व पित्त शामक है ।
तिल स्निग्ध, उष्ण, उत्तम वायुशामक, कफ-पित्तवर्धक, पचने में भारी, बल-बुद्धि व जठराग्नि वर्धक, त्वचा, बाल तथा दाँतों के लिए हितकारी हैं । (अष्टांगहृदय, सुश्रुत संहिता)
शाकों में बथुआ श्रेष्ठ है । इसमें पौष्टिक तत्त्वों के साथ विविध औषधीय गुणधर्म भी पाये जाते हैं । यह उत्तम पथ्यकर है । आयुर्वेद के अनुसार बथुआ त्रिदोषशामक, रुचिकारक, स्वादिष्ट एवं भूखवर्धक तथा पचने में हलका होता है...
शरद पूनम की रात को आप जितना दूध उतना पानी मिलाकर आग पर रखो और खीर बनाने के लिए उसमें यथायोग्य चावल तथा शक्कर या मिश्री डालो । पानी वाष्पीभूत हो जाय, केवल दूध और चावल बचे, बस खीर...
शरद ऋतु में ध्यान देने योग्य महत्त्वपूर्ण बातें : (1) रोगाणां शारदी माता । रोगों की माता है यह शरद ऋतु । वर्षा ऋतु में संचित पित्त इस ऋतु में प्रकुपित होता है । इसलिए शरद पूर्णिमा की चाँदनी...
आयुर्वेद के अनुसार ताजी, कोमल, छोटी मूली रुचिकारक, भूखवर्धक, त्रिदोषशामक, पचने में हलकी, तीखी, हृदय के लिए हितकर तथा गले के रोगों में लाभदायी है ।
दायें पैर के तलवे की बायीं हथेली से और बायें पैर के तलवे की दाहिनी हथेली से रोज (प्रत्येक तलवे की) 2-4 मिनट सरसों के तेल या घी से मालिश करें । यह प्रयोग न केवल कई रोगों से...
काली मिर्च गर्म, रुचिकर, पचने में हलकी, भूखवर्धक, भोजन पचाने में सहायक तथा कफ एवं वायु को दूर करनेवाली है । यह खाँसी, जुकाम, दमा, अजीर्ण, अफरा, पेटदर्द, कृमिरोग, चर्मरोग, आँखों के रोग, पेशाब-संबंधी तकलीफों, भूख की कमी, यकृत...
किसी भी प्रकार के वातरोग के लिए यह उपाय आजमाया जा सकता है : पहली उँगली (तर्जनी) हाथ के अँगूठे के ऊपरी सिरे पर रखो और तीन उँगलियाँ सीधी रखो ।
वर्षा ऋतु वायु की प्रधानता की ऋतु है । इन दिनों में सूर्य की किरणें कम मिलने से जठराग्नि मंद होकर अन्न का पाचन कम होता है और शरीर में कच्चा रस (आम) उत्पन्न होने लगता है ।
यथा सुराणाममृतं सुखाय तथा नराणां भुवि तक्रमाहुः । ‘जिस प्रकार स्वर्ग में देवों को सुख देनेवाला अमृत है, उसी प्रकार पृथ्वी पर मनुष्यों को सुख देनेवाला तक्र है ।’ (भावप्रकाश)
नींबू उत्तम पित्तशामक, वातानुलोमक, जठराग्निवर्धक व आमपाचक है । यहअम्लरसयुक्त (खट्टा) होने पर भी पेट में जाने के बाद मधुर हो जाता है ।