(शीत ऋतु : 21 दिसम्बर से 17 फरवरी 2023 )
शीत ऋतु में पाचनशक्ति प्रबल रहती है। अतः इस समय लिया गया पौष्टिक व बलवर्धक आहार वर्ष भर शरीर को तेज, बल और पुष्टि प्रदान करता है। आइये, इस ऋतु में अपनी सेहत बनाने के लिए कुछ सरल प्रयोग जानें :
१. बल, सौन्दर्य व आयुवर्धक प्रयोग :
शरद पूर्णिमा के बाद पुष्ट हुए आँवलों का रस ४ चम्मच, शुद्ध शहद २ चम्मच व गाय का घी १ चम्मच • मिलाकर नियमित सेवन करें। इससे बल, वर्ण, है ओज, कांति व दीर्घायुष्य की प्राप्ति होती है ।
२. मस्तिष्क- शक्तिवर्धक प्रयोग :
६ से १० ख काली मिर्च, २ बादाम, २ छोटी इलायची, १ गुलाब में का फूल व आधा चम्मच खसखस रात को एक कुल्हड़ में पानी में भिंगोकर रखें। सुबह बादाम के त्रि छिलके उतारकर सबको मिलाकर पीस लें व गर्म दूध के साथ मिश्री मिलाकर पियें। इसके बाद २ घंटे तक कुछ न खायें।
इससे मस्तिष्क की थकान दूर होकर तरावट आती है एवं शक्ति बढ़ती है। यह प्रयोग २-३ हफ्ते नियमित करें।
३. स्फूर्तिदायक पेय :
२ चम्मच मेथीदाना २०० मि.ली. पानी में रात भर भिगोकर रखें। सुबह धीमी आँच पर चौथाई पानी शेष रहने तक उबालें । छानकर गुनगुना रहने पर २ चम्मच शुद्ध शहद मिलाकर पीयें। दिन भर शक्ति व स्फूर्ति बनी रहेगी।
४. पौष्टिक नाश्ता :
चना, मूँग, मोठ यह सब मिलाकर एक कटोरी, एक मुट्ठी भर मूँगफली व एक चम्मच तिल (काले हों तो उत्तम) रात भर पानी में भिगोकर रखें। सुबह नमक मिलाकर भाप लें, उबाल लें। इसमें हरा धनिया, पालक व पत्तागोभी काटकर तथा चुकंदर, मूली एवं गाजर कद्दूकश करके मिला दें। ऊपर से काली मिर्च बुरककर नींबू निचोड़ दें। चार व्यक्तियों के लिए नाश्ता तैयार है। इसे खूब चबा-चबाकर खायें। यह नाश्ता सभी प्रकार के खनिज द्रव्यों, प्रोटीन्स, विटामिन्स व आवश्यक कैलरीज की पूर्ति करता है। जिनकी उम्र ६० साल से अधिक है व जिनकी पाचनशक्ति कमजोर है, उनको नाश्ता नहीं करना चाहिए।
५. शक्ति-संवर्धक आहार :
(१) बाजरे के आटे में तिल मिलाकर बनायी गयी रोटी पुराने गुड़ ट • व घी के साथ खाना, यह शक्ति-संवर्धन का उत्तम न स्रोत है।
१०० ग्राम बाजरे से ४५ मि.ग्रा. कैल्शियम, ५ मि.ग्रा. लौह व ३६१ कैलोरी ऊर्जा प्राप्त होती. द है। तिल व गुड़ में भी कैल्शियम व लौह प्रचुर मात्रा में पाये जाते हैं।
(२) सर्दियों में पत्तोसहित ताजी, कोमल मूली का सेवन शक्तिवर्धक सरल साधन है। मूली में, गंधक, पोटैशियम, आयोडीन, कैल्शियम, लौह, फॉस्फोरस, मैग्नीशियम आदि १० खनिज विपुल मात्रा में पाये जाते हैं।
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अस्थि-निर्माण में इनकी विशेष आवश्यकता होती है। (पुरानी, पकी मूली अथवा सूखी (बड़ी, मोटी) मूली त्रिदोष-प्रकोपक होने के कारण त्याज्य है ।)
६. बल-वीर्य – पुष्टिवर्धक प्रयोग:
शीत ऋतु में दही का सेवन लाभदायी है। दही में दूध से डेढ़ गुना अधिक कैल्शियम पाया जाता है। यह दूध की अपेक्षा जल्दी पच जाता है। शीघ्र शक्ति प्रदान करनेवाले द्रव्यों में से दही एक है। ताजे, मधुर दही में थोड़ी मिश्री मिलाकर मथ लें (इससे दही ह के दोष नष्ट हो जाते हैं) व दोपहर में भोजन के साथ खायें। इससे शरीर पुष्ट हो जाता है।
सावधानी: आम, अजीर्ण, कफ, सर्दी । जुकाम, रक्तपित्त, गुर्दे व यकृत की बीमारी एवं नब हृदयरोग वालों को दही का सेवन नहीं करना चाहिए। इन प्रयोगों में देश (स्थान), व्यक्ति की उम्र, में प्रकृति व पाचन के अनुसार द्रव्यों की मात्रा कम या अधिक ली जा सकती है।
Ref: RP-अंक नवम्बर – 2010
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