चिरौंजी या चारोली बल-वीर्यवर्धक, वात-पित्तनाशक, शीतल, हृदय के लिए हितकर एवं त्वचा-विकारों में लाभदायी है । यह मधुर, पौष्टिक तथा स्वादिष्ट होने से व्यंजनों, मिठाइयों, ठंडाई आदि में प्रयोग की जाती है ।
चिरौंजी के लाभ व प्रयोग
* चिरौंजी के सेवन से शारीरिक शक्ति बढ़ती है, थकावट दूर होती है तथा मस्तिष्क को ऊर्जा मिलती है ।
* यह वीर्य को गाढ़ा बनाती है । शुक्राणुओं की कमी व नपुंसकता में इसे दूध के साथ लें ।
* यह हृदय को शक्ति देती है तथा दिल की घबराहट में अत्यंत लाभदायी है ।
* चिरौंजी शीतपित्त में अति लाभप्रद है । शीतपित्त के चकत्ते होने पर दिन में एक बार 15-20 चिरौंजी के दानों को खूब चबा-चबाकर खायें तथा दूध में पीस के चकत्तों पर इसका लेप करें ।
* गले, छाती व पेशाब की जलन में चिरौंजी का सेवन लाभदायी है ।
* मुँह एवं जीभ के छाले होने पर इसके 3-4 दाने खूब देर तक चबायें तथा इसका रस मुँह में इधर-उधर घुमाते रहें, फिर निगल जायें । इस प्रकार दिन में 3-4 बार करें ।
* इसे दूध के साथ पेस्ट बना के लगाने से त्वचा चमकदार बनती है, झाँइयाँ दूर होती हैं ।
* सिरदर्द (neuralgic headache) व चक्कर आने में पिसी चिरौंजी दूध में उबालकर लें ।
सावधानीः पचने में भारी एवं कब्जकारक होने से भूख की कमी व कब्ज के रोगियों को इसका सेवन अल्प मात्रा में करना चाहिए ।
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