जीरा भूख व रुचि वर्धक, पाचक, तीखा, रुक्ष एवं बल-वीर्य को बढ़ानेवाला है। यह बुद्धिवर्धक व आँखों के लिए हितकारी है। उष्ण होने से यह कफ-वातशामक तथा पित्तवर्धक है।
जीरा रक्त व गर्भाशय को शुद्ध करनेवाला तथा बुखार, अफरा, सूजन, श्वेतप्रदर, उलटी, दस्त, चर्मरोग, रक्तविकार और हृदयरोग में लाभदायी है। यह मल-मूत्र को साफ लाता है तथा अतिरिक्त चरबी व दर्द को कम करता है।
यह मूत्रवर्धक है। इसका उपयोग पेशाब- संबंधी बीमारियों, जैसे सूजाक (gonorrhoea), पथरी एवं मूत्रावरोध में किया जाता है। बालकों के पाचन विकारों में यह अधिक हितकारी है।
औषधीय प्रयोग
(१) पेट की अनेक समस्याओं में :
* जीरे को सेंक के बनाये गये चूर्ण को रायते या साग-भाजी में मिला के खाने से आँतों में मल की रुकावट से होनेवाली सड़न एवं दुर्गंध दूर होती है। मल के दूषित जलीय अंश का शोषण होकर मल अच्छी तरह बँधा हुआ बाहर आता है। पेट में दूषित वायु का संग्रह, अफरा, कब्ज आदि समस्याओं में भी लाभ होता है।
* जीरा, काली मिर्च, छोटी हरड़, अजवायन व सेंधा नमक समभाग लें। जीरे को थोड़ा भून लें। और शेष सामग्री के साथ पीस के महीन चूर्ण बना लें । ३ ग्राम चूर्ण गुनगुने पानी या शहद के साथ दिन में १-२ बार लेने से अरुचि, अफरा, पेटदर्द, हिचकी, वातविकार, अपचन आदि में लाभ होता है।
* आँतें एवं पाचनक्रिया कमजोर हो जाने से थोड़े-थोड़े दस्त लगते हैं, पेट में दर्द होता रहता है तथा शरीर धीरे-धीरे दुबला-पतला होता जाता है। इस अवस्था में भोजन के बाद भुने हुए जीरे का चूर्ण, काली मिर्च और सेंधा नमक मिलायी हुई छाछ का सेवन करते रहने से लाभ होता है। बवासीर व संग्रहणी में भी लाभ होता है।
(२) अम्लपित्त (hyperacidity) : जीरे, धनिये व मिश्री का समभाग चूर्ण मिला के २ से ३ ग्राम की मात्रा में दिन में २ बार सेवन करने से लाभ होता है।
(३) पेशाब की रुकावट, पेशाब में संक्रमण एवं पथरी में : १ से २ ग्राम जीरे के चूर्ण को मिश्री के साथ लेने से लाभ होता है।
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