उच्च रक्तदाब के कारण :
(१) युवावस्था में उच्च रक्तदाब का प्रमुख कारण शारीरिक व मानसिक तनाव है। जीवन संघर्ष में मन और तन पर जो दबाव पड़ता है, उसे आधुनिक परिभाषा में ‘स्ट्रेस’ और ‘स्ट्रेन’ कहा जाता है। भावुक व दुर्बल मनवाले व्यक्तियों पर स्ट्रेन का प्रभाव विशेष होता है। स्ट्रेन के कारण शरीर की नस-नाड़ियाँ असाधारण तनाव का अनुभव करती हैं, जो उच्च रक्तदाब को जन्म देता है। समय पाकर यह हृदय, वृक्क और मस्तिष्क को दुष्प्रभावित कर हार्ट अटैक, वृक्क विकार, लकवा, ब्रेन हैमरेज (मस्तिष्क में रक्तस्राव) आदि रोगों के लिए द्वार खोल देता है। (२) आवश्यकता को ध्यान में रखे बिना अधिक मात्रा में एवं बार-बार खाना, विशेषतः खट्टे-नमकीन, तीखे, तले हुए, उष्ण तीक्ष्ण द्रव्यों का तथा स्निग्ध पदार्थों का अति सेवन उच्च रक्तदाब को निमंत्रण देता है। कृपया इनसे बचें ।
सर्वेक्षण से ज्ञात हुआ है कि स्थूल (मोटे) व्यक्तियों में रक्तदाब उच्च होने की विशेष संभावना रहती है। आश्रम में केवल २० रु. में मिलनेवाला ‘शोधनकल्प चूर्ण’ मँगवाकर मोटापा दूर करने के लिए बाजारू दवाइयों पर होनेवाले व्यर्थ के खर्च से बच सकते हैं।
(३) नमक स्वभाव से ही रक्तदाब बढ़ानेवाला है । कंदमूल, फल एवं सब्जियों में शरीर की आवश्यकता पूर्ति करने के लिए स्वाभाविक – रूप में नमक होता ही है। अतः सब्जी बनाते समय नमक का उपयोग अल्प मात्रा में ही करें।
(४) धूम्रपान, मद्यपान तथा मादक पदार्थों के सेवन के बाद होनेवाली उत्तेजना से भी रक्तदाब में वृद्धि होती है।
(५) एलोपैथिक दर्दनिवारक दवाओं (एस्पीरीन, एनासीन आदि), एंटिबायोटिक्स,सल्फा ड्रग्ज आदि का दीर्घकाल तक सेवन करने से किडनियों की क्रियाशीलता कम हो जाती है, जिससे वे शरीर में संचित मल का निष्कासन करने में असमर्थ हो जाती हैं। यह संचित मल भी रक्तदाब में वृद्धि कराता है। (६) आयुर्वेद के अनुसार पित्त के प्रकोप से रक्तदाब में वृद्धि होती है। उपरोक्त सभी हेतु पित्त- प्रकोपक हैं।
लक्षणः उच्च रक्तदाब के रोगी में शिरः शूल, भ्रम (चक्कर), घबराहट, हृदय की धड़कन बढ़ना, चलने से या परिश्रम से श्वास फूलना, अनिद्रा, ज्ञानेन्द्रियों (आँख, कान, नाक आदि) का अपने विषयों को ग्रहण करने में असमर्थ होना आदि लक्षण उत्पन्न होते हैं।
चिकित्सा : रक्तदाब के संतुलन के लिए किये जानेवाले आधुनिक उपचार इस व्याधि को समूल मिटाने में बिल्कुल समर्थ नहीं हैं, अपितु वे शरीर के गुर्दे आदि अवयवों पर विपरीत प्रभाव डालकर समय पाकर किडनी फेल्युअर जैसी भयावह व्याधियों का निमित्त बन जाते हैं। रक्तदाब को कम करनेवाली एलोपैथिक दवाएँ उच्च रक्तदाब पर नियंत्रण अवश्य करती हैं, परंतु उनसे रोग की उत्पत्ति के मूल कारण पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अतः इनसे सावधान ! इनकी निरर्थकता को देखकर पाश्चात्य चिकित्सक भी भारतीय ऋषि-मुनियों के आयुर्वेद तथा योगशास्त्र निर्दिष्ट उपायों के प्रति आकृष्ट हुए हैं।
ध्यान, आसन, प्राणायाम और मंत्रजप से अत्यंत सुलभता से रक्तदाब पर नियंत्रण पाया जा सकता है। नियमित ध्यान, प्राणायाम आदि करनेवाले साधकों में यह बीमारी नहीं पायी जाती । अतः प्राणायाम और घरेलू उपचार, जो पूर्ण निर्दोष और सफल साबित हो रहे हैं, उन्हींकी ओर लौटें।
ध्यान से मानसिक शांति मिलती है। ध्यान और आसन से (विशेषतः, शवासन तनावग्रस्त तन और मन के शिथिलीकरण एवं रक्तदाब को नियंत्रित रखने अचूक पाया गया है) नसों में ढीलापन आता है। शरीर में रक्त का संचार प्राणों के द्वारा ही होता है। प्राण निर्बल होने से रक्त संचार मंद पड़ जाता है। – प्राणायाम से प्राणबल बढ़ता है व रक्त संचार सुव्यवस्थित होने लगता है। रक्त, नाड़ियाँ तथा मन भी शुद्ध हो जाता है। प्राणायाम से धमनियों का काठिन्य भी दूर हो जाता है और वे मृदु व लचीली बनती हैं जिससे रक्तदाब नियंत्रित रहता है। मंत्रजप से मन में सत्त्वगुण की वृद्धि होती है, जिससे आचार- विचार सात्त्विक होने लगते हैं व मनोबल बढ़ता है।
‘ॐ शांतिः’- इस मंत्र का जप करने से भी रक्तदाब नियंत्रित होता है।
उपचार :
(१) पित्तशमनार्थ सप्तामृतलौह, स्वर्णमाक्षिक भस्म तथा प्रवाल पिष्टी समभाग मिलाकर आधा ग्राम मात्रा में दिन में २ बार घी के साथ लें।
(२) २०० मि.ली. पानी में १५ से २० ग्राम काली द्राक्ष ५-६ घंटे तक भिगोकर फिर एक चौथाई रहने तक उसे उबालें। इस काढ़े के साथ ३ से ५ ग्राम त्रिफला चूर्ण रात को सोने से पहले लें। त्रिफला सौम्य शीत-विरेचक एवं श्रेष्ठ रसायन द्रव्य है। इसका सेवन करनेवाले को उच्च रक्तदाब की बीमारी नहीं होती।
(३) सर्पगंधा, शंखपुष्पी तथा जटामांसी का चूर्ण समभाग मिलाकर ३ ग्राम मिश्रण दिन में दो- तीन बार लेने से रक्तदाब शीघ्र ही नियंत्रित होता है।
(४) किशमिश-प्रयोग: रात को १ किशमिश गुलाबजल में भिगो दें और सुबह चबाकर खायें। दूसरे दिन २, तीसरे दिन ३ – इस प्रकार हररोज १ किशमिश बढ़ाते हुए २१वें दिन २१ किशमिश लें । फिर १-१ किशमिश कम करते हुए (२०, १९, १८ इस प्रकार से) १ किशमिश पर आयें। यह प्रयोग एक बार करने के बाद कुछ दिन छोड़कर दुबारा करें। ३ बार यह प्रयोग करने से उच्च रक्तदाब नियंत्रित हो जाता है। आहार में पथ्य का पालन अवश्य करें।
(५) असली रुद्राक्ष की माला गले में पहनने से भी रक्तदाब नियंत्रित रहता है।
पथ्यकर आहार : उच्च रक्तदाब में आँवला, देशी गाय के दूध तथा घी का सेवन परम हितकर है। आँवले का मुरब्बा नियमित रूप से खाने से भी रक्तदाब नियंत्रित रहता है। इस रोग में मूँग, अदरक, नींबू, अनार, सेब एवं अंगूर का सेवन लाभदायी है।
ये रक्तदाब घटानेवाले हैं।
अपथ्यकर आहार : चाय, कॉफी, अति स्निग्ध एवं मिर्च-मसालेयुक्त पदार्थ, दही, टमाटर, आलू, पनीर, मिठाई, मांस, फास्टफूड, पचने में भारी, ठंडे व बासी पदार्थ हानिकारक (रक्तदाब बढ़ानेवाले) हैं। अपथ्यकर विहार : दिन में सोना, रात्रि -जागरण, अति श्रम एवं धूप में घूमना हानिकारक हैं।
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