हमारे शरीर का लगभग ६० से ७०% भाग पानी से बना हुआ है। यदि पानी शुद्ध एवं गुणवत्ता युक्त न हो तो इसका प्रभाव हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर तो पड़ता ही है, साथ ही हमारे मन व व्यवहार पर भी होता है। कहावत भी है जैसा पीओ पानी वैसी होवे वाणी ।
वर्तमान समय में विभिन्न हानिकारक रसायन, तरह-तरह के कीटाणुओं से युक्त पदार्थ, गटर आदि नदी, तालाबों एवं अन्य पानी के स्रोतों में मिल के पानी को प्रदूषित कर रहे हैं। प्रदूषणरूपी दानव ने भूमिगत जल को भी अपने शिकंजे में ले लिया है। ऐसे में शुद्ध जल प्राप्त करना टेढ़ी खीर होता जा रहा है।
आर.ओ. टेक्नोलॉजी के द्वारा भी लोग जल- शुद्धीकरण का कार्य करते हैं लेकिन उसमें शरीर के लिए आवश्यक खनिज भी पानी से निकल जाते हैं। आधुनिक शोध बताते हैं कि आर.ओ. का पानी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं है।
पीने के लिए कौन-सा जल श्रेष्ठ है और वह हमें कैसे उपलब्ध हो सकता है इसका वर्णन हमारे शास्त्रों में आता है। उसके अनुसार उपाय किया जाय तो घर-घर में अमृत समान जल उपलब्ध होगा, पीने के पानी के लिए होनेवाला खर्च भी कम होगा व अशुद्ध जल के कारण होनेवाली स्वास्थ्य समस्याओं से छुटकारा सहज में ही मिलेगा। इतना ही नहीं, इससे वर्तमान की जल की कमी की समस्या के हल में भी मदद मिलेगी।
कौन-सा जल है श्रेष्ठ ?
चरक संहिता (सूत्रस्थान २७.१९८) में आता है कि ‘आकाश से गिरनेवाला जल शीतल, पवित्र, सुखद, मधुर, निर्मल, हलका इन ६ गुणों से युक्त होता है। यह स्वभाव से दिव्य जल है । प्रकृत्या दिव्यमुदकं… ‘ 1
इस आकाश जल को इन्द्र से छोड़े जाने के कारण ‘ऐन्द्र जल’ भी कहते हैं। यह जलों में सबसे प्रधान जल है । यह त्रिदोषशामक, बलवर्धक, रसायन और मेधावर्धक है। आकाश जल में चूना तथा मैग्नेशियम के लवण नहीं होने से यह अत्यंत हलका तथा आंत्रिक ज्वर (आँतों के बुखार), विसूचिका (हैजा) आदि के रोगोत्पादक जीवाणुओं से रहित होने से स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ है ।
भगवान धन्वंतरिजी कहते हैं:”आकाश से गिरनेवाला जल अमृत के समान जीवन के लिए उपयोगी है । यह तृप्तिकारक तथा थकावट, ग्लानि, प्यास, मूर्च्छा (बेहोशी), तन्द्रा, निद्रा व दाह को शांत करनेवाला तथा निश्चितरूप से सभी अवस्थाओं में अत्यंत पथ्य होता है।”
(सुश्रुत संहिता, सूत्रस्थान : ४५.३) विशेष संग्रहणीय है इस समय का जल आकाश से गिरता हुआ जल भी चार प्रकार का होता है। धार (वर्षा), कार (ओला), तौषार (ओस) और हैम (बर्फ) । इनमें से धार जल प्रधान है। धार जल के दो भेद हैं – गांग और सामुद्र। इन दोनों में भी गांग जल प्रधान है। यह आश्विन मास (३० सितम्बर से २८ अक्टूबर) में बरसता है ।
शरद ऋतु (२३ अगस्त से २३ अक्टूबर) का जल कफ और वायु नाशक होता है। आचार्य चरकजी कहते हैं: “विशेषकर राजाओं को, राजा के समान धनाढ्य सर्वगुण सम्पन्न पुरुषों को, सुकुमार पुरुषों को शरद ऋतु में बरसे हुए जल को एकत्र कर प्रयोग में लाना चाहिए।”
शरद ऋतु में मघा नक्षत्र का योग होने से यह सोने पर सुहागे जैसा है। मघा नक्षत्र में बरसनेवाले जल की बड़ी भारी महिमा है। अतः शरद ऋतु तथा आश्विन मास का जल विशेषरूप से संग्रहणीय है ।
मघा जल है विशेष गुणकारी (मघा नक्षत्र : १७ अगस्त दोपहर १-४४ से ३१ अगस्त सुबह ९-४४ तक)
भगवान सूर्य जब मघा नक्षत्र में रहते हैं तब आकाश से गिरनेवाला वर्षा का जल गंगाजल के समान माना जाता है। पूज्य बापूजी के सत्संग में आता है : “जब सूर्य की मघा नक्षत्र में उपस्थिति होती है तब होनेवाली बरसात का पानी गंगामय है। मघा नक्षत्र का जल छान-छून के रख लो । रात को २-२ बूँदें आँखों में डालो और सुबह आँखों की खराबी गायब ! वह पानी बच्चों को पिलाओ महीना – दो महीना तो पेट के कृमि गायब ! जैसे गंगाजल में दूसरा कोई गड़बड़ जल भी मिलता है तो गंगाजल उसको ठीक कर देता है वैसे ही मघा नक्षत्र के पानी में यह प्रभाव है।
मघा नक्षत्र के दिनों में बारिश हो रही थी, मैंने आसमान की तरफ देखा और पलकें खोलकर रखीं तो आँखों में वह मघा नक्षत्र का पानी आया । इससे आँखों में भी मेरे को विशेष फायदा हो गया। आँखों में जो चिपचिपापन होता था वह भी कम हो गया। एक दिन ही लगाया तो इतना फायदा हो गया !
मघा का यह पानी पीने से पेटदर्द में बहुत फायदा होता है। अगर आप कोई आयुर्वेदिक दवा ले रहे हैं तो मघा जल के साथ लें, उसके फायदे बहुत बढ़ जायेंगे। यह पानी आपके घर में खाना बनाने के लिए भी बहुत अच्छा है।”
गुजरात में खंभात नाम का नगर है। वहाँ पहले घर-घर में बारिश के पानी को इकट्ठा करने के लिए छोटे-छोटे कुएँ, टंकियाँ होती थीं। आज भी वे टंकियाँ बहुतों के घरों में पायी जाती हैं। खंभातवासी सालभर मघा नक्षत्र युक्त आकाश जल का उपयोग करते हैं और स्वस्थ पाये जाते हैं। वहाँ के लोगों का कहना है कि ‘हम लोग वर्षा के दिनों में एकत्र किया जल सालों से पीते हैं और बीमारियाँ हमसे दूर रहती हैं। हमारे यहाँ के बड़े- बूढ़े भी स्वस्थ रहते हैं, बीमार नहीं पड़ते ।
पानी की शुद्धता के लिए आधुनिक यंत्रों द्वारा टीडीएस (total dissolved solids) मापा जाता है । जिस पानी में जितना टीडीएस कम होता है उतना वह पानी शुद्ध माना जाता है । महानगरपालिका के पानी और हमारे घर की टंकी में रहनेवाले वर्षा के पानी – दोनों का टीडीएस मापा गया तो महानगरपालिका के पानी का टीडीएस वर्षा के पानी की अपेक्षा ६८% ज्यादा पाया गया। बारिश के समय हमारी पानी की टंकी में पुराना पानी भी बचा रहता है, टंकी में मघा नक्षत्र का थोड़ा भी जल पड़ जाता है तो सारा पानी शुद्ध रहता है।’
जल एकत्र करने की विधि
सुश्रुत संहिता में आकाश जल एकत्र करने की विधि इस प्रकार दी गयी है : ‘पवित्र तथा श्वेत वस्त्र को खुले में फैला के (चारों ओर बाँस, लकड़ी आदि में बाँध के लटका के) उसके एक भाग से पानी चुआ के शुद्ध पात्र में भर लें अथवा पक्के मकान की साफ छत से गिरा हुआ जल या अन्य पवित्र पात्रों में संचित किया हुआ जल सोने, चाँदी या मिट्टी के बड़े पात्रों में रखना चाहिए। इस प्रकार से एकत्रित तथा सुरक्षित किये जल को बारहों मास पीने के कार्य में लेना चाहिए ।’
वर्षा का शुरुआती पानी इकट्ठा न करें । तीसरी-चौथी बारिश से आगे के जल को पक्षियों, बंदरों आदि की विष्ठा, कचरा आदि से बचाते हुए टंकी में एकत्र करें। छत से पानी एकत्र करना हो तो छत को तथा पानी के निष्कासन स्थानों, पाइपों आदि को अच्छी तरह साफ कर लें। फिर छत के पाइप का दूसरा छोर ऐसी स्वच्छ भूमिगत टंकी में जोड़ दें जिसमें सूर्य की किरणें न पड़ती हों। टंकी प्लास्टर्ड हो, जिससे पानी रिसे नहीं और ऊपर ताँबे अथवा पीतल का ढक्कन हो तो अति उत्तम ।
विशेष : अन्य समय के वर्षा के जल में मघा नक्षत्र में होनेवाली वर्षा का थोड़ा-सा जल मिला देने से सारा ही जल मघा नक्षत्र के जल का लाभ देता है। हर वर्ष मघा नक्षत्र पड़ता ही है इसलिए शुरुआती बारिश को छोड़ के पूरी वर्षा का जल एकत्र करके भोजन बनाने, पीने, औषधि आदि में उपयोग कर सकते हैं । ध्यान रहे प्लास्टिक के पात्र में जल इकट्ठा न करें, इससे जल शीघ्र खराब हो जाता है ।
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