आश्विन मास के कृष्ण पक्ष को ‘पितृ पक्ष’ या ‘महालय पक्ष’ बोलते हैं । आपका एक माह बीतता है तो पितृलोक का एक दिन होता है । साल में एक बार ही श्राद्ध करने से कुल-खानदान के पितरों को तृप्ति हो जाती है ।


श्रद्धया दीयते यत्र तच्छ्राद्धं परिचक्षते ।
‘श्रद्धा से जो पूर्वजों के लिए किया जाता है, उसे ‘श्राद्ध’ कहते हैं ।’
‘पद्म पुराण’ में आता है : ‘श्राद्ध से प्रसन्न हुए पितर आयु, पुत्र, धन, विद्या, राज्य, लौकिक सुख, स्वर्ग तथा मोक्ष भी प्रदान करते हैं ।’अमावस्या को श्राद्ध की महिमा
यद्यपि प्रत्येक अमावस्या पितरों की पुण्यतिथि है तथापि आश्विन मास की अमावस्या पितरों के लिए परम फलदायी है । जिन पितरों की शरीर छूटने की तिथि याद नहीं हो, उनके निमित्त श्राद्ध, तर्पण, दान आदि इसी अमावस्या को किया जाता है ।
अमावस्या के दिन पितर अपने पुत्रादि के द्वार पर पिंडदान एवं श्राद्धादि की आशा में आते हैं । यदि वहाँ उन्हें पिंडदान या तिलांजलि आदि नहीं मिलते हैं तो वे शाप देकर चले जाते हैं । अतः श्राद्ध अवश्य करना चाहिए ।
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श्राद्ध पक्ष के दिन ऋषियों के प्रति, अपने माँ-बाप के प्रति श्रद्धा व कृतज्ञता व्यक्त करने, अनाहत चक्र को विकसित करने और अंदर की सुरक्षा के दिन हैं ।
जिन पूर्वजों ने हमें अपना सर्वस्व देकर विदाई ली, उनकी सद्गति हो ऐसा सत्सुमिरन करने का अवसर यानी ‘श्राद्ध पक्ष’ ।