23
Jan
रासायनिक रंग समाज के तन, मन और व्यवहार को दूषित कर रहा था। इसलिए समाजरूपी देवताओं का तन-मन स्वस्थ रखने के लिए मैनें पलाश के फूल, गंगाजल एवं तीर्थों का जल मँगवाकर होली के प्राचीन उत्सव को मनाना शुरू किया। जो वैदिक ढंग से होली नहीं खेलते, उन लोगों में असंतुलन, चिड़चिड़ापन और आत्महत्याओं की संख्या अधिक पायी जाती है। वैदिक होलिकोत्सव आपके तन और मन को झंझटप्रूफ, अशांतिप्रूफ और रोगप्रूफ बनाने में सहायता करता है। – पूज्य संत श्री आशारामजी बापू
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