आध्यात्मिक होली के रंग रँगे

होली हुई तब जानिये, पिचकारी गुरुज्ञान की लगे |

सब रंग कच्चे जाय उड़, एक रंग पक्के में रँगे |  

पक्का रंग क्या है ? पक्का रंग है ‘हम आत्मा है’ और ‘हम दु:खी है, हम सुखी है, हम अमुक जाति के है ….’ – यह सब कच्चा रंग है | यह मन पर लगता है लेकिन इसको जाननेवाला साक्षी चैतन्य का पक्का रंग है | एक बार उस रंग में रँग गये तो फिर विषयों का रंग जीव पर कतई नहीं चढ़ सकता |

‘Holi is celebrated in the real sense when you get sprinkled with the colour of Guru’s Knowledge.
All other colours should fade out and the fast colour (of non-duality) should remain.’

Which is the fast colour? ‘I am Atman’ is the fast colour and ‘I am happy; I am unhappy; I am so and so; I am of so and so, I am Patel’ are fading colours. These fading colours dye the mound but the witness to the mind is Pure Consciousness. It is the fast colour. Once one is dyed in that colour, one is never dyed or influenced by the colours of sensual pleasures.

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होलिकोत्सव में पूज्यश्री का उद्‌बोधन

होली का सही लाभ लें होलिकां आगतां दृष्ट्वा हृदयी हर्षन्ति मानवाः । पापमुक्तास्तु संजाता क्षुद्रता विलयं गताः ।। होलिका आने पर लोग हर्षित होते हैं, पापमुक्त होते हैं और क्षुद्रता दूर चली जाती है । हृदय की संकीर्णता, नाखुशी क्षुद्रता है । हृदय में खुशी आना माना क्षुद्रता का चले जाना । हृदय हर्षित हो [...]

कितना खतरनाक है रासायनिक रंगों से होली खेलना !

‘‘रंगों के जहरीले रसायन त्‍वचा के द्वारा जल्‍द ही खून में मिल जाते हैं ओर हीमोग्‍लोबिन के साथ प्रतिक्रिया कर मस्तिष्‍क और हृदय जैसे महत्‍वपूर्ण केन्‍द्रों को ऑक्‍सीजन से रहित कर देते है, जिससे मृत्‍यु भी हो सकती है ।’’   - डॉ. एस. मर्चेंट   ‘‘पानी से भरे गुब्‍बारे तो इतने खतरनाक होते हैं कि [...]

आप ये रोग नहीं चाहेंगे न !

रंग रसायन दुष्‍प्रभाव काला लेड ऑक्‍साइड गुर्दे (kidneys) की बीमारी, दिमाग की कमजोरी हरा कॉपर सल्‍फेट ऑंखों में जलन, सूजन, अस्‍थायी अंधत्‍व सिल्‍वर एल्‍युमिनियम ब्रोमाइड कैंसर नीला प्रूशियन ब्‍लू ‘कॉन्‍टेक्‍ट डर्मेटाइटिस’ नामक भयंकर त्‍वचा-रोग लाल मरक्‍यूरी सल्‍फाइड त्‍वचा का कैंसर बैंगनी क्रोमियम आयोडाइड दमा, एलर्जी    मैं हाथ जोड़ के प्रार्थना करता हॅूं कि समाज [...]

ऐसी होली… जो रखे तन-मन तंदुरूस्‍त

रासायनिक रंग समाज के तन, मन और व्‍यवहार को दूषित कर रहा था। इसलिए समाजरूपी देवताओं का तन-मन स्‍वस्‍थ रखने के लिए मैनें पलाश के फूल, गंगाजल एवं तीर्थों का जल मँगवाकर होली के प्राचीन उत्‍सव को मनाना शुरू किया। जो वैदिक ढंग से होली नहीं खेलते, उन लोगों में असंतुलन, चिड़चिड़ापन और आत्‍महत्‍याओं की [...]

पलाश-फूल आदि के प्राकृतिक रंगों से क्‍यों खेलें होली ?

एतत्‍पुष्‍पं कफं पित्‍तं कुष्‍ठं दाहं तृषामपि। वातं स्‍वदं रक्‍तदोषं मूत्रकृच्‍छं च नाशयेत्।। ‘पलाश के फूल कुष्‍ठ, जलन, वात, पित्‍त, कफ, तृषा, रक्‍तदोष एवं मूत्रकृच्‍छ आदि रोगों का नाश करने में सहायक हैं।‘ ‘‘पलाश के फूल हमारे तन, मन, मति और पाचन-तंत्र को पुष्‍ट करते हैं। वायुसंबंधी 80 प्रकार की बीमारियों को भगाने की शक्ति, गर्मी [...]

प्राकृतिक रंग कैसे बनायें ?

पीला रंग : 2 चम्‍मच हल्‍दी चूर्ण 2 लीटर पानी में उबालें । जामुनी रंग : चुकंदर उबालकर पीस के पानी में मिला लें । काला रंग : ऑंवला पाउडर लोहे के बर्तन में रातभर भिगोयें । लाल रंग : आधे कप पानी में 2 चम्‍मच हल्‍दी चूर्ण व चुटकीभर चूना मिलाकर 10 लीटर पानी [...]

प्राकृतिक गुलाल कैसे बनायें ?

लाल गुलाल : सूखे लाल गुड़हल के फूलों का चूर्ण उपयोग करें । हरा गुलाल : गुलमोहर अथवा रातरानी की पत्तियों को सुखाकर पीस लें। भूरा हरा गुलाल : मेंहदी चूर्ण के साथ ऑंवला चूर्ण मिला लें । पीला गुलाल : 4 चम्‍मच बेसन में 2 चम्‍मच हल्‍दी चूर्ण मिलायें । पलाश के पत्‍ते व [...]

बापू के साथ होली खेलने क्‍यों आती थी इतनी भीड़ ?

20 वर्ष पुराना चश्‍मा उतरा       पूज्‍य बापूजी द्वारा पलाश-फूलों के रंग की पिचकारी मेरी ऑंखों पर लगी, 20 वर्षों से चश्‍मालगाने की आदत छूटी और सब कुछ स्‍पष्‍ट दिखने लगा । - डॉ. संजय मदान, कुरूक्षेत्र (हरियाणा) ...तो उसकी बीमारी दूर हो गयी       एक बार होली में पूज्‍य बापूजी द्वारा पलाश-फूलों का रंग [...]

होली के दिनों में क्‍या करें ? – पूज्‍य बापूजी

होली की रात्रि का जागरण और भगवन्‍नाम-जप बहुत ही फलदायी होता है। इनका सभी पुण्‍यलाभ लें। होली की रात को बिना तेल-घी का भोजन करना चाहिए। भ्‍ज्ञूने हुए चने, पुराने जौ, लाई, खील (लावा) खाने-खिलाने चाहिए । होली के बाद 15 दिन बिना नमक का भोजन लेनेवाला व इस मौसम में सुबह नीम के 20 [...]

परमात्मारूपी रंगरेज की प्रीति जगाने का उत्सव : होलिकोत्सव

365 दिनों में से 364 दिन तो तेरे-मेरे के शिष्टाचार में हमने अपने को बाँधा लेकिन होली का दिन उस तेरे-मेरे के रीति-रिवाज को हटाकर एकता की खबरें देता है कि सब भूमि गोपाल की और सब जीव शिवस्वरूप हैं, सबमें एक और एक में सब । सेठ भी आनंद चाहता है, नौकर भी आनंद चाहता है ।

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