हनुमान जी के जीवन चरित्र से प्रेरणा :

हनुमान तेहि परसा कर पुनि कीन्ह प्रनाम ।

राम काजु कीन्हें बिनु मोहि कहाँ बिश्राम ।।

 

हनुमानजी ने मैनाक पर्वत को हाथों से छू दिया, फिर प्रणाम करके कहा – भाई ! श्रीरामचन्द्रजी का काम किये बिना मुझे विश्राम कहाँ?

तो जिस प्रकार श्री राम के कार्य को पूर्ण किये बिना हनुमान जी को विश्राम भाता नहीं, उसी तरह हम साधकों का भी यही दृड़ निश्चय होना चाहिए कि गुरुदेव हमें जिस परम लक्ष्य तक पहुँचना चाहते हैं, हम उसे पाए बिना रुके नहीं और कहीं विश्राम के लिए रुके नहीं ! हनुमान जी के जीवन चरित्र से प्रेरणा लेते हुए हमें भी इसी तरह नित-निरंतर आगे बढ़ते रहना चाहिए !

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