गाय ईश्वर की अनमोल कृति है । गाय का  प्राकृतिक, आर्थिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक – सभी दृष्टियों से महत्त्व है । जैसे ब्रह्मनिष्ठ संतों के बिना जीवन में आध्यात्मिक उन्नति असम्भव है । गाय का केवल दूध ही नहीं बल्कि पाँचों गव्य (दूध, दही, घी, गोबर व गोमूत्र) और इनका मिश्रण पृथ्वी पर अमृततुल्य हैं । उसके अलावा गौ की सेवा और गौओं से बनने वाला वातावरण, गो-रज, गायों के रँभाने की ध्वनि और गायों की आभा – ये सभी अपना-अपना महत्त्व रखते हैं, अपने-अपने लाभ देते हैं । गाय स्वास्थ्य, सात्त्विकता, आध्यात्मिकता, पर्यावरण-सुरक्षा, राष्ट्रीय समृद्धि – सभी में लाभदायी एवं महत्त्वपूर्ण है । गायों का महत्त्व केवल इन्हीं बातों पर नहीं है, वे दुःख-दरिद्रता को भी दूर करने वाली हैं ।

 

देशी गाय की परिक्रमा, स्पर्श, पूजन आदि से शारीरिक, बौद्धिक, आर्थिक, आध्यात्मिक आदि कई प्रकार के लाभ होते हैं। पूज्य बापू जी के सत्संगामृत में आता है कि “देशी गाय के शरीर से जो आभा (ओरा) निकलती है, उसके प्रभाव से गाय की प्रक्षिणा करने वाले की आभा में बहुत वृद्धि होती है। सामान्य व्यक्ति की आभा 3 फीट की होती है, जो ध्यान भजन करता है उसकी आभा और  बढ़ती है। साथ ही गाय की प्रदक्षिणा करे तो आभा और सात्त्विक होगी, बढ़ेगी।”

यह बात आभा विशेषज्ञ के.एम.जैन ने ‘यूनिवर्सल ओरा स्कैनर’ यंत्र द्वारा प्रमाणित भी की है। उन्होंने बताया कि गाय की 9 परिक्रमा करने से अपने आभामण्डल का दायरा बढ़ जाता है।

पूज्य बापू जी कहते हैं- “संतान को बढ़िया, तेजस्वी बनाना है तो गर्भिणी अलग-अलग रंग की 7 गायों की प्रदक्षिणा करके गाय को जरा सहला दे, आटे-गुड़ आदि का लड्डू खिला दे या केला खिला दे, बच्चा श्रीकृष्ण के कुछ-न-कुछ दिव्य गुण ले के पैदा होगा। कइयों को ऐसे बच्चे हुए हैं।”

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