(दीपावली पर्व : 22 से 26 नवम्बर)
पर्वों का गुच्छा यानी दीपोत्सव, दिवाली । दीपावली सामाजिक व धार्मिक उत्सव है और साधकों की दृष्टि से अपने स्वरूप में आने का उत्सव है । भगवान श्रीराम अयोध्या से दूर हैं तो अयोध्यावासियों के पास सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं है । और रामजी अयोध्या में हैं तो दीवालें भी प्रसन्नता का एहसास करती हैं और वृक्ष भी कुछ धन्यवाद देते हैं, हर नगरवासी आनंदित रहता है । ऐसे ही तुम्हारे दिल में अगर अंतरात्मा राम प्रकट हो जायें तो केवल 12 महीने में एक बार दिवाली नहीं, तुम्हारी हर क्षण दिवाली, हर रोज दिवाली होगी ।
‘दीप’ माने दीप्ति या चमक देनेवाला… चम-चम चमकनेवाली मन, तन और भावना में जगमगा रही ज्योति । 2 प्रकार की ज्योति होती है – अंतर्ज्योति और बाह्य ज्योति । दीपावली बाह्य ज्योति का आश्रय लेकर अंतर्ज्योति जगाने की सत्प्रेरणा देती है ।
ज्योतिषामपि तज्ज्योतिस्तमसः परमुच्यते । (गीता : 13.17)
हृदय में झिलमिल-झिलमिल आत्मज्योति है । वह अज्ञान-अंधकार को भी जानती है और बाहर के अंधकार को भी जानती है और दीया जला, प्रकाश हुआ, अंधकार चला गया उसको भी जानती है । उस आत्मा-परमात्मा की ज्योति जगाने के लिए बाहर की ज्योतियों का समूह है ।
भारतीय संस्कृति हमेशा ज्ञान की, प्रकाश की पुजारी रही है । तमसो मा ज्योतिर्गमय । हम अंधकार से प्रकाश की ओर जायें । अविद्या के दीये, तारे और बिजली चमक रहे हैं, उन्हें प्रकाशित करनेवाली आत्मज्योति है । इस आत्म-परमात्म ज्योति के प्रकाश में ही अंधकार प्रतीत होता है और प्रकाश प्रकाशित होता है । अँधेरा और उजाला दोनों को आत्मज्योति जानती है, साथ ही अंदर काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मत्सर (ईर्ष्या, द्वेष) – ये षड्रिपु हैं, उनको भी जानती है ।
दिवाली हमें उत्साहित करती है कि आत्मज्योति के प्रकाश में जियो । क्रोध आया, देखो, ‘क्रोध आया है तो जायेगा । मैं क्रोधी बनूँ तो कितना बनूँ ? चिंता आयी है तो जायेगी, मैं चिंता में कितना फिसलूँ ?’ ऐसे ही लोभ, मोह, अहंकार आते हैं और जाते हैं, इसको जाननेवाली वह आत्म-परमात्मज्योति है ।
मन की मलिनता को धो डालनेवाली, बुद्धि की मंदता को दूर करनेवाली और बुद्धि को बुद्धियोग में बदलने का सामर्थ्य रखनेवाली यह आत्मज्योति है, ईश्वर-प्रसादजा बुद्धि है । ईश्वर-प्रसादजा बुद्धि पाने की प्रेरणा करनेवाला उत्सव है दिवाली का उत्सव । कैसी भी दुःखद अवस्था आये, कितना भी घना अँधेरा हो, सवेरा आता है । कितनी भी कष्टदायी अवस्था हो, घबराओ मत ! ज्ञान के प्रकाश में जियो, आत्मा का कतई कुछ नहीं बिगड़ता । तुम हमेशा आत्मा-परमात्मा के निकट हो । जो नित्य है वह आत्मा-परमात्मा है और जो अनित्य है वह दुःख का अँधेरा है । जो नित्य है वह सुख का, ज्ञान का प्रकाश है – सवेरा है; जो अनित्य है वह विकारों का आवेग है । काम, क्रोध, लोभ, मोह आते हैं – जाते हैं, चिंता आती है – जाती है किंतु आत्मज्योति ज्यों-की-त्यों प्रकाश देती है ।
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