
सिंधु सागर का तट है। प्रार्थनाएँ और भजन गाते-गाते, कीर्तन करते-करते दिन बीता, रात आई और गई, दूसरे दिन का सूरज निकला और अस्त हुआ। सभी अपार भूख-ताप से उत्तप्त हो उठेष फिर भी सागर देव के प्रति श्रद्धा भावना बढ़ती ही गई। सब में अटूट श्रद्धा वर्त्तमान रही कि सागर देव कोई न कोई मार्ग दिखायेंगे ही और हम सभी को इस धर्म-संकट से पार उतारेंगे। देखते ही देखते तीसरे दिन का सूर्य भी उग आया। दो-दो दिन से किसी के घट में अन्न का कौर भी नहीं पड़ा था। तीन दिन की पूरे जनसमूह की भूख-प्यास देख साथ ही अपने प्रति अटूट श्रद्धा का उनमें दर्शन कर संध्या के समय सागर-देवता का हृदय डोला, सिंधु-जल में एक हलचल हुई। एक तेज प्रकाश-पुंज में वह निराकार ब्रह्म अपना अव्यक्त रूप व्यक्त करते हुए बोलेः
“हिन्दू भक्जनों ! तुम सभी अब अपने अपने घरों की ओर लौट पड़ो। तुम्हारा संकट दर हो इसके लिये मैं शीघ्र ही नसरपुर में अवतार लेने जा रहा हूँ। फिर मैं सभी को सच्ची राह दिखाऊँगा। इसलिए निश्चित मन से सभी जहाँ से आये हो वापस लौट जाओ, पर अपने धर्म को सदा पकड़े हुए बढ़ना।”
इस आकाशवाणी को सुनना था कि सभी हर्ष विभोर हो नाच उठेः “जय जलनारायण…. जय जलपति….जय जगद्धारक हे…..।” Read More
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नीम का पेड़ चैत्र में नई कोमल पत्तियों से लदा रहता है | चेटीचंड के दिन १५-२० नीम की कोमल पत्तियों को २-३ कालीमिर्च के साथ अच्छी तरह से चबा के खाये |
ये प्रयोग त्वचा की बिमारियों से, खून की गड़बड़ी से और आम बुखार से पुरे साल सुरक्षा करता है |