शादी की वर्षगाँठें तो लाखों लोगों की होती हैं, जन्म के दिन भी प्रतिदिन करोड़ों लोगों के होते हैं, मृत्यु के दिन बरसी (पुण्यतिथि) भी किन्हीं-किन्हीं तपस्वियों, समाज-सुधारकों की मनायी जाती है लेकिन आत्मसाक्षात्कार दिवस तो धरती पर कभी-कभी,...

आसोज सुद दो दिवस, संवत् बीस इक्कीस।
मध्याह्न ढाई बजे, मिला ईस से ईस।।
देह सभी मिथ्या हुई, जगत हुआ निस्सार।
हुआ आत्मा से तभी, अपना साक्षात्कार।।
ब्रह्मनिष्ठ पूज्य बापूजी के ‘आत्मसाक्षात्कार-दिवसकी आप सभीको हार्दिक बधाइयाँ !
आत्मसाक्षात्कार दिवस जैसा पावन अवसर हमें यह सीख देता है कि ‘बुद्धिमान पुरुष जीवन के अमूल्य समय को अमूल्य कार्यों में ही लगाते हैं और अमूल्य कार्य भी उसीको समझना चाहिए जिससे अमूल्य वस्तु की प्राप्ति हो| और वह अमूल्य उपलब्धि है – आत्मसाक्षात्कार| ऐसी सर्वोत्तम उपलब्धि को पानेवाले बापूजी जैसे प्रकट महापुरुष का अनुसरण करके मानवमात्र अपना मंगल कर सकता है| प्राणिमात्र के परम हितैषी पूज्य बापूजी के सभी साधक इस साक्षात्कार दिवस पर भजन-कीर्तन, सत्संग व गरीबों की सेवा करके अपने सद्गुरु का आत्मसाक्षात्कार दिवस मनाकर मावनमात्र को ‘बहुजनहिताय-बहुजनसुखाय का मंगलमय संदेश से लाभान्वित करें|