श्री योगवाशिष्ठ - एक वेदांत ग्रन्थ
वेदांत ग्रंथ दो प्रकार के होते हैं- एक होते हैं प्रक्रिया ग्रंथ और दूसरे होते हैं सिद्धांत ग्रंथ।
पृथ्वी, जल, तेज, वायु और आकाश – इन पाँच स्थूल भूतों तथा सूक्ष्म भूतों की जानकारी, स्थूल भूतों से स्थूल शरीर कैसे बना ? सूक्ष्म भूतों से सूक्ष्म शरीर कैसे बना ? चैतन्य स्वरूप आत्मा इससे पृथक कैसे है ? – इस प्रकार जो ग्रंथ विभिन्न चरणों में, प्रक्रियात्मक ढंग से परब्रह्म-परमात्मा की समझ देते हैं, उन ग्रन्थों को कहा जाता है 'प्रक्रिया ग्रंथ'। जैसे – पंचीकरण, विचारसागर, विचार-चंद्रोदय, पंचदशी आदि।
'श्री योगवासिष्ठ महारामायण' सिद्धांत ग्रंथ है। इसमें कहानियाँ, संवाद, इतिहास – सब कहे गये हैं और घुमा फिराकर वही सिद्धांत की सारभूत बात कही गयी है। पुराणों में राजा हरिश्चंद्र आदि पूर्वकालीन श्रेष्ठजनों के प्रेरक चरित्रों और उनकी रसमय धर्मचर्चाओं के द्वारा सत्य को समझाया गया है। इस प्रकार पुराणों में कथा-प्रसंग अधिक आते हैं और सार बात (आत्मा-परमात्मा की बात) का कहीं-कहीं संकेत है, परंतु 'श्री योगवासिष्ठ' कदम-कदम पर सार बात है।
वसिष्ठ जी कहते हैं- "जिसका अंतःकरण मुक्ति के लिए खूब लालायित हो, सत्कर्म करके खूब शुद्ध हो गया हो तथा ध्यान करके खूब एकाग्र हो गया हो उसे यह उपदेश सुनने मात्र से आत्मसाक्षात्कार हो जायेगा। जिन लोगों को इस ग्रंथ में, इस ज्ञान में प्रीति नहीं है, वे अपरिपक्व हैं। उनको चाहिए कि व्रत, उपवास, तीर्थाटन, दान, यज्ञ, होम, हवन आदि करें। इन्हें करके जब उनका अंतःकरण परिपक्व होगा, तब उनको इसमें रुचि होगी।
-परम पूज्य संत श्री आशाराम जी बापू
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ