तो कबीर जी ने बोला कि सुमिरन
ऐसा कीजिये खरे निशाने चोट खरा निशानाक्या है जहां से मन को बुद्धि को इन्द्रियों को सत्ता-स्फुर्ति मिलती है उस
चैतन्य में स्थिति हो जाये ये खरा निशाना है
सुमिरन ऐसा कीजिये खरे निशाने चोट । मन ईश्वर में लीन हो हले ना जीभा होंठ
जीभ भी नहीं हिलती, होंठ भी नहीं हिलते और ऐसे जप में पहुंचने के लिये एक उत्तम साधन बताते हैं माला श्वसो
श्वास की श्वास अन्दर गया ओम बाहर आया तो गिनती श्वास अन्दर गया राम बाहर आया तो २ श्वास अन्दर या
शान्ति ऐसे ही श्वासो-श्वास की गिनती होती रहे पचास साठ सत्तर सौ तक , गलती ना हो गलती हो तो फिर से करें
। ऐसा अभ्यास करने वाले का जल्दी हले ना जीभा होंठ ऐसे मंत्र-जप में पहुंच जायेगा । जल्दी मतलब ऐसा नहीं कि
मतलब दो दिन में या दो हफ्ता में दुसरे कोई बारह साल में करें बारह महीने में उससे भी आगे निकल जाये , जभी
मौका मिले श्वासो-श्वास की माला फिर आपको तकलीफें छू नहीं सकती दुसरों को लगे कि ये बैठी है बैठा है लेकिन
आपकी यात्रा अंदर से चलती है ये आप ही जानते हैं भगवान जानते हैं अभी मैं कुछ नहीं कर रहा हूं बैठ रहा हूं लो,
ध्यान में तो आंखें बंद करो एक जगह देखो या खाली श्वास पर नजर रखो एक जगह देखने का भी आग्रह नहीं है आंख
बंद करने का भी आग्रह नहीं है किसी को पता ही ना चले कि इसके साथ ध्यान चल रहा है माला श्वासो-श्वास की
जगत-भगत के बीच जो फेरे सो गुरुमुखी ना फेरे सो नीच । जो छोटी मत्ति के हैं अथवा जो छोटा साधन करते हैं उनको
ये पता ही नहीं चलता कि कैसा खजाना है अथवा जिनके छोटे गुरु हैं स्वर्ग तक की यात्रा वाले , ब्रह्मज्ञानी गुरु करे
सब, एक दम पहुंचे हुये गुरु की ये साधना पद्धति सत्पात्र शिष्य को फलीभुत हो जाती है । अंगुठा बाहर ऐसे बैठना
है जैसे घडी का लोलक नहीं हिलता है काँटा वो घडियाल जो दीवाल की घडी होती है पहले के जमाने में लोलक नहीं
हिलता है ऐसे, ऐसे दायें-बायें । जो श्वासो-श्वास का कर लेते हैं तो अच्छा है समझो श्वासो-श्वास में मन नहीं लगता तो
दायें गया तो ओम एक आनन्द दो शान्ति तीन माधुर्य चार गुरू जी पांच ओम छः ये सभी लोग कर सकते हैं दायें गया
तो नाम बायें गया तो गिनती करो जरा पच्चीस की गिनती का आनन्द लो ।सुनने के लिये सुनना है जिससे सुना जाता
है उस परमेश्वर में शांति, आनन्द और अपनत्व पाना है ऐसा हो जाये ऐसा मिल जाये ऐसा करुं वैसा करुं कोई इच्छा
छोडो जो है ठीक है बढिया है इधर जाऊं बढिया है ऊधर जाऊं जो जहां है अगर वहां संतुष्ट सुखी नहीं है तो स्वर्ग में भी
नहीं रहेगा , अभी अभ्यास हो गया चालू रखो मेरे को अब जाना है।